रुपेश कुमार यादव ” रूप ” की कविताएं | Rupesh Kumar Yadav Poetry
देखो होली आई
जमाना बदल रहा है भाई
देखो होली आई….
देवर भाभी रूठ गए सब
रिश्ते मानो टूट गए सब
घर में छुपी आज भौजाई
देखो होली आई…..
होली का हुड़दंग आज
कम हो गया रंग आज
बस एक दिन की फगुआई
देखो होली आई….
रंग अवीर गुलाल धरा है
मन में खूब मलाल भरा है
बिना भांग लोग बौराई
देखो होली आई…..
ढोल मंजीरा कहां है बाजे
मस्तानों की टोली साजे
खा पीकर सब करे सोआई
देखो होली आई…..
गांव में पसरा है सन्नाटा
जैसे लगा व्यापार में घाटा
घर-घर बस लड़िका चिल्लाई
देखो होली आई….
कजरी गीत
शहर से निक गांव बा
पिपरा के छांव बा ना …।
खुला खुला बा मैदान
हरिया लागे खूब सिवान
आम महुआ खेती बारी
चारों तरफ फैलाव बा….१
सहर से निक गांव बा ना ….
कुत्ता बिल्ली घर में डोले
मोर पपिया बन में बोले
चिड़िया चहके डाली डाली
कौवा करे काव काव बा ……२
शहर से निक के गांव बा ना…..
कच्ची पक्की बा डगरिया
दूर घर से बा नगरिया
हाथी घोड़ा मोटर गाड़ी
चलत नदिया में नांव बा……३
शहर से निक गांव बा ना……
पहने सुंदर तन पर सारी
घूंघट डाले घर में नारी
चूड़ी कंगन बिंदिया लाली
निक लागे रंगवा से पांव बा ….४
शहर से नीक गांव बा ना……
रिश्ते नातो का है ख्याल
पूछे सबका लोग हाल
भाई चारा सेवा भाव
खूब आपसी लगाव बा….५
शहर सै निक गांव बा ना….
महाकुंभ
दोहा
दक्षिण से उत्तर दिशा, सूर्य करें प्रस्थान
तीरथ राज प्रयाग में, माघ मकर स्नान ।।
चौपाई
साधू संत भक्त सब संगा
चले नहावन पावन गंगा ।।
एक मास सब गंग निवासी
तीरथपति प्रयाग के वासी ।।
दोहा
कल्पवास इक मास का, करते मन से लोग
ऋषि मुनि के दर्शन मिले ,
कटत मनुज के रोग।।
चौपाई
तात मात गुरु बालक आए
उतरि उतरि सब गंग नहाए ।।
मेटहु हृदय सकल अधियारा
तन पावन मन में उजियारा ।।
दोहा
मिटे शोक संताप सब , मिटत हृदय के पीर
शीतल जल स्नान करि ,निर्मल होत शरीर।।
चौपाई
भक्ति भाव गुंजत दिन राती
सुनत भजन निर्मल भई छाती ।।
बरनि न जाइ तंबु की शोभा
देखि रूप अतिशय मन लोभा। ।
दोहा
प्रती वर्ष अति हर्ष से, लागत कुंभ का पर्व
भजन भाव कीर्तन सुनि, आवत मन में गर्व।।

कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही ( उत्तर प्रदेश।)
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