Sab Badal Raha hai

सब बदल रहा है | Sab Badal Raha hai

सब बदल रहा है

( Sab badal raha hai )

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस

देख रहे है आज सभी यह आधुनिक कलाकृति,
इसके साथ बिगड़ रही है प्रदूषण से यह प्रकृति।
भूल रहे है रीति-रिवाज एवं अपनो की ये स्मृति,
जिससे सभी में बढ़ रहीं है हिंसा की ‌यह प्रवृति।।

धूल धूंआ एवं बढ़ रहा है आज चारों तरफ़ शोर,
अपने फ़ायदो के खातिर मानव बन रहा है चोर।
हमदर्द नही कोई किसी का है अंधेरा चारो और,
जंगल में भी कम हो गये आज बाघ-चीता मोर।।

ना बन रही सास बहू में ना देवरानी एवं जेठानी,
माॅं बाप को दे ना रहा कोई भरकर लोठा पानी।
ज़हर भरा है सबके अंदर न रही वो मीठी वाणी,
ना रहा कोई सत्यवादी नही रहा कर्ण सा दानी।।

हो रहे है घर-घर में आज-कल बच्चे सारे जिद्दी,
भूल रहे है सभ्यता‌ एवं संस्कृति की यह परिधि।
हुस्न के दीदार हो रहें एवं न जाने कोई संस्कार,
रोज़ाना देशी ठर्रा इंग्लिश पीते गर्मी है या सर्दी।।

बदल रहा है खाना पीना इसी से बढ़ रहे है रोग,
कोई मंनोरंजन समझता कोई करता है विरोध।
न करो लालच चुगली एवं बुरे विचारो का लोभ,
उलझो न कोई भी इसमे पी जावो गुस्सा क्रोध।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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