सभ्य समाज की गाली हूँ | Sabhya Samaj ki Gaali
सभ्य समाज की गाली हूँ
( Sabhya samaj ki gaali hoon )
सांस रूकी तो मुर्दाबाद ,
सांस चली तो जिन्दाबाद !
चढ़ता नित नित सूली हूँ ,
मैं किस खेत की मूली हूँ ! !
बंजारों की बस्ती में रहता हूँ ,
अपनी मस्ती में बहता हूँ !
जीवन की एक पहेली हूँ ,
मैं किस खेत की मूली हूँ !!
सूर , कबीर को गाता हूँ ,
भरपेट भोजन पाता हूँ !
मधुशाला की हवेली हूँ ,
मैं किस खेत की मूली हूँ !!
ना जग से नाता रखता हूँ ,
ना किसी को मैं सुहाता हूँ !
दुनिया का एक सवाली हूँ ,
मैं किस खेत का मूली हूँ !!
जग का मैं बहुरूपिया हूँ
नाटक खूब दिखता हूँ !
कहते लोग बवाली हूँ ,
मैं किस खेत की मूली हूँ !!
पागल सनकी बैरागी हूँ ,
अपने भाग्य का भागी हूँ !
मैं रागहीन कव्वाली हूँ ,
मैं किसी खेत का मूली हूँ !!
बिन पेदे का लोटा हूँ ,
सिक्का एकदम खोटा हूँ !
डूबते सूरज की लाली हूँ ,
मैं किस खेत का मूली हूँ !!
मैं अन्नहीन एक थाली हूँ ,
सभ्य समाज का गाली हूँ !
झोली से एकदम खाली हूँ ,
मैं किस खेत की मूली हूँ !!
मैं उजड़े चमन का माली हूँ
मधुरस से खाली खाली हूँ !
मैं फकीर की झोली हूँ ,
मैं किस खेत की मूली हूँ !!
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