Kavita Aag
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आग

( Aag )

आग में हि आग नहीं होती
पानी में भि होता है दावानल
धातुयें भी बहती हैं जमीं मे धारा की तरह
आसमान से भी बरसती है आग धूप बनकर

आग का होना भी जरूरी है
हिम्मत, हौसला, जुनून के लिए
बिना ऊर्जा के शक्ति मिलती नही
बिना आग के ज्योत जलती नही

भीतर बाहर दृश्य अदृश्य
चहुंओर है आग का प्रमाण
जला देती आग मानवता सारी
आग में हि बसते सबके प्राण

मालिक हैं इस आग के स्वयं आप
जलाती भी है आग बुझाती भी है आग
होती है संचालित मगर आपकी सोच से
उठाती भी है आग गिराती भी है आग

आग हि जीवन भी है मृत्यु भी
आग निर्माण भी है विद्धवंस भी
है आग आपमे किस तरह की
है निर्णय इसका आप हि के पास

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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