रो दिये | Sad Ghazal in Hindi
रो दिये
( Ro Diye)
जो हमारी जान था जिसपे फ़िदा ये दिल हुआ
जब हुआ वो ग़ैर का सब कुछ लुटाकर रो दिये।
है अकड़ किस बात की ये तो ज़रा बतलाइये
वक्त के आगे यहां रुस्तम सिकंदर रो दिये।
फख़्र था मुझको बहुत उनकी मुहब्बत पर मगर
जब घुसाया पीठ में इस बार खंजर रो दिये।
मुफ़लिसी के दौर में परखा किसे हमने नहीं
आज़माया हर किसी को आज़माकर रो दिये।
बाद अरसे के मिले मुझको पुराने यार जब
आंख भर आई गले उनको लगाकर रो दिये।
लहलहाती थी फ़सल जो खेत लगते थे हरे
उस जमीं को देख कर वीरान बंजर रो दिये।
वो मुहब्बत से भरे ख़त जो लिखे तुमने कभी
रूठकर तुमसे उसी ख़त को जलाकर रो दिये।
वो गये थे छोड़कर उसको जहां उस मोड़ पर
है खड़ी अब भी नयन ये देख मंजर रो दिये।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )