साहिल- तेरे लिए | Hindi Ghazal
साहिल- तेरे लिए
( Sahil- tere liye )
मन के अरमान मेरे बहकने लगे,
तुम चले आओ अब मेरे आगोश में।
बिन तुम्हारे है सूनी, प्रणय वाटिका,
रिक्तता सी है मेरे प्रणय कोश में।।
तुम मिले मुझको जब, मैं दिवानी हुई,
जो मेरे पास था छोड़ कर आ गई।
प्रीत बाबुल की मैने भुलाई पिया,
और सखियों से मुंह मोड़ कर आ गई।।
बंध गई जब अनोखी प्रणय डोर से,
तो चली आई संग होके खामोश मैं।
बिन तुम्हारे है सूनी, प्रणय वाटिका,
रिक्तता सी है मेरे प्रणय कोश में।।
श्याम बन कर निकट आओ तुम सावरे,
और मुझको गले से लगाओ जरा।
धर अधर पर अधर, छेड़ दो मीठा स्वर
बांसुरी की तरह से बजा लो जरा।।
उर के अरमान सब, पूर्णता पाएं अब,
आओ सब भूल कर ना रहें होश में।
बिन तुम्हारे है सूनी, प्रणय वाटिका,
रिक्तता सी है मेरे प्रणय कोश में।।
मेरी चूड़ी की खन खन तुम्हारे लिए,
मेरी बिंदी तुम्हारा ही उपहार है।
मांग तुम ही सिंदूर मेरे पिया,
मेरा कजरा भी तुम पे ही बलिहार है।।
मेरे अधरो की लाली तुम्हारे लिए,
तुम से पाती पिया आज संतोष मैं।
बिन तुम्हारे है सूनी, प्रणय वाटिका,
रिक्तता सी है मेरे प्रणय कोश में।।
तुम ने मुझको चुना, जब ये मैने सुना,
मेरे गालों पे लाली सी छाती गई।
बैठ एकांत में, कर हृदय शांत मैं,
बावरी की तरह मुस्कुराती गई।।
कल्पनाओं में डुबकी लगाते हुए,
भूल बैठी जमाने के गुण दोष मैं।
बिन तुम्हारे है सूनी, प्रणय वाटिका,
रिक्तता सी है मेरे प्रणय कोश में।।
मेरे कंगन खनक, दे रहे तुमको हक,
मेरी करधन बुलाती है आओ पिया।
तुम प्रणेता विजेता मेरी प्रीत के,
कह रही श्वेता अब मुस्कुराओ पिया।।
प्रीत के राग में, डूब अनुराग में,
एक दूजे के हो ना रहें होश में।
बिन तुम्हारे है सूनी, प्रणय वाटिका,
रिक्तता सी है मेरे प्रणय कोश में।।
कवयित्री :- श्वेता कर्ण
पटना ( बिहार)
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