सजनी की चतुराई सैया करे सफाई
( Sajni ki chaturai saiya kare safai )
लो घर-घर दिवाली आई, शौहर की शामत आई।
देखो सजनी की चतुराई, अब सैया करे सफाई।
बीवी सरदर्द में झूमे, नित को सैर सपाटा घूमे।
काम की बारी आई, मैडम कमरदर्द ले आई।
धनलक्ष्मी के चक्कर में, गृह लक्ष्मी न जाए रूठ।
दो वक्त की रोटी खानी, चल साजन जल्दी उठ।
बैठी नुस्खे नौ बतलाई, रंग रोगन भी कार्रवाई।
एक प्रेम की छड़ी घुमाई, अब सैंया करे सफाई।
सजनी शांत भाव से बोली, आओ मेरे हमजोली।
घर को चमक दो ऐसा, जैसे सजी हो मेरी डोली।
मैं तो हूं घर की महारानी, तुम मेरे दिलबर जानी।
दिवाली का दे दो तोहफा, सुंदर सी कोई निशानी।
बालम बैठो खाओ मिठाई, दीपों की दिवाली आई।
देखो सजनी की चतुराई, अब सैया करे सफाई।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )