समझदार हुए बच्चे:हम कच्चे के कच्चे

Hindi poem on child | समझदार हुए बच्चे:हम कच्चे के कच्चे

समझदार हुए बच्चे:हम कच्चे के कच्चे

( Samajhdar Hue Bache : Hum kache ke Kache )

 

वह खेल रहा था
खेले ही जा रहा था
सांप हिरण शेर हाथी और जिब्रा से
बिना डरे बिना थके बिना रूके
कभी उनके लिए घर बनाता
तो कभी छत पर चढ़ाता
कभी झूला झुलाता
कभी गिराता उठाता
फिर बंद पिंजरे में कर उन्हें सुलाता!
ठहाके लगाता
दिखाने मुझे पास ले जाता
ना जाऊं तो चिल्लाता
चलो ना चलो ना की रट लगाता
बेमन से ही सही जाता
देखता
फिर सोचता
कितना निडर है ये बच्चा?
शेर सांप से है खेलता!
उठा उठाकर है पटकता।
एक हम हैं
शेर नाम के आदमी से डरते हैं,
अपना हक भी उनके लिए छोड़ते हैं।
पीढ़ियों से यही होता आया है,
अदृश्य भय मन में गया समाया है।
जबकि सच ये है कि
शेर चौपाया और निरक्षर होता है
लिखना पढ़ना नहीं जानता
उसे जंगल ही भाता है
इसलिए सर्वत्र जंगल ही बनाता है
जंगल रहेगा, तो राज करेगा!
तू कब इसे समझेगा?
पढ़-लिख तो गए हो
समझोगे कब?
वो बच्चा बड़ी होशियार है
जानता है
जंगली जानवर के लिए जंगल ही ठीक है
इसलिए खेल खाल कर तोड़ ताड़कर
कूड़े पर फेंक आता है
और सदा मुस्कुराता है।

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नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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