सीख दे गई | Kavita Seekh
सीख दे गई
(Seekh De Gayi )
सूखी टहनी
उड़ आई मेरे पास
थी उसे कुछ कहनी
बोली
मुझे न काटा कर
जरूरत भर मांग लिया कर
मैं खुशी खुशी दे दूंगी
नहीं हूं बहरी गूंगी
सुनती हूं सब कुछ
देखती हूं तेरे व्यवहार
सहकर तेरे अत्याचार भी
कुछ कहती नहीं
इसका क्या मतलब
दोगे धरती से उखाड़?
जंगल दोगे उजाड़
अस्तित्व मेरा मिटाओगे
बुद्धु !
क्या स्वयं बच पाओगे?
मैं हूं तेरी मां सी
तेरा हित हूं चाहती
सो बोलने चली आई
आगे न कहना
मां सी नहीं बताई?
लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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