समझदारी

समझदारी

रात होने को थी। करीब 8:00 के आस पास का वक्त था। रजनीश अपने कमरे में बैठकर सुबह का अखबार पढ़ रहा था। (रजनीश को सुबह ऑफिस के लिए जल्दी निकलना होता था, तो अखबार पढ़ने का वक्त ही नहीं मिल पाता था)

अचानक रजनीश को अपनी पत्नी ममता और माता शकुंतला (70 वर्षीय) की एक दूसरे से वाकयुद्ध करने की आवाज सुनाई दी। वे कमरे से बाहर निकले तो उन्हें ममता रसोई में बर्तन साफ करते हुए गुस्से से चिल्लाती नजर आयी-

“अगर इसने कहना नहीं माना… इसने एक बार में आवाज नहीं सुनी तो मैं इसे फिर से मारूंगी।”

“हम बच्चे को कुछ कह भी नहीं सकते क्या? डाँट भी नहीं सकते क्या? हमारा कुछ बोलना भी तुझे इतना बुरा लग रहा है।” शकुंतला बोली।

माताजी और ममता को इस तरह एक दूसरे से वाकयुद्ध करते देख रजनीश ने ममता को चुप कराते हुए कहा- “अब चुप भी हो जाओ। क्यों जबान लड़ा रही हो? छोटे बड़े की शर्म बिल्कुल भूल गई हो।

अब एक शब्द भी मुंह से मत निकालो और अपने कमरे में जाओ।” पति द्वारा डाँटने पर ममता खामोश हो गई। अब रजनीश माताजी के कमरे में गया तो उसने देखा कि पुत्र मयंक (8 वर्षीय) एक तरफ बैठा सुबक रहा था। रजनीश ने मम्मी से पूछा- “आखिर क्या बात है मम्मी जी? ममता इतना चिल्ला क्यों रही है?”

शकुंतला बोली- “बेटा, मेरी तबीयत कल से ठीक नहीं है। बुखार का असर लग रहा है। मुझे अब ठंड भी लग रही थी इसलिए मैं अभी कुछ देर पहले ही, बेड पर आकर अपनी रजाई में लेट गई थी। तभी मयंक कमरे में आया।

मैंनें मयंक से कहा- ‘बेटा, दूसरी तरफ से चढ़कर ऊपर आ जाओ’.. लेकिन इसने मेरा कहना ना माना और यह तेजी से उधर से ही चढ़ा, जिधर मेरे पैर थे। यह अपने पैरों को मेरे मेरे पैरों पर रखकर बेड पर चढ़ा। इस तरह मयंक के पैरों द्वारा उसके शरीर का बोझ मेरे पैरों पर पड़ गया। मयंक के इस तरह चढ़े जाने पर मुझे बहुत दर्द हुआ, मेरी चीख-सी निकल गई। मैं मयंक को डांट लगाने लगी।

मयंक पर गुस्सा करते हुए मैं कहने लगी- ‘तुझे जब मैंनें इस तरफ से बेड पर चढ़ने को कहा था तो तू इधर से क्यों नहीं बेड पर चढ़ा। वहाँ से क्यों चढ़ा, जिधर मेरे पैर थे? तुझे पता भी है कि मुझे कितना दर्द हो रहा है?’ मेरे द्वारा मयंक को डाँटने की आवाज सुनकर अचानक ममता कमरे में आई और मयंक को बुरी तरह से पीटने लगी। मैंनें ममता से मयंक को छोड़ने और इस तरह न मारने की गुहार भी लगाई, लेकिन यह न रुकी।

ममता मयंक को लगातार मारते हुए कहने लगी- ‘आज तो मैं इसको जान से मार दूँगी। बहुत दिमाग खराब कर रखा है इस कमबख्त ने। जब देखो- बदतमीजी, बदतमीजी, बदतमीजी।’ बता बेटा, क्या ममता का मयंक को मेरे सामने मारना, इस तरह का व्यवहार करना सही था? क्या मेरा अपने पोते पर कोई अधिकार नहीं है?

क्या मैं इसको कुछ कह भी नहीं सकती? समझा भी नहीं सकती? दर्द में बच्चे पर चिल्ला भी नहीं सकती? ममता द्वारा मयंक को पीटने से तो मुझे यही लग रहा था कि जैसे यह मुझसे परेशान है। मुझे बर्दाश्त नहीं कर पा रही है, इसलिए मेरे मना करने के बावजूद मयंक को लगातार पीट रही है, मेरा गुस्सा बच्चों पर निकाल रही है।

कल पोती गुंजन (12 वर्षीय) को जब मैंनें समझाने की बात कही थी, उसकी गलती पर उसपर गुस्सा करने लगी थी तब भी ममता ने गुंजन को गुस्से में भला बुरा कहा था। कई दिनों से मैं यह नोटिस कर रही हूँ कि मेरा बच्चों को कुछ भी कहना, इसको बुरा लग रहा है।

बेटा, अब तू ही बता- क्या हम बच्चों और बहू का ध्यान नहीं रखते? हर तरह से तन-मन-धन से उनके लिए तैयार रहते हैं, फिर भी इस तरह की बातें, हरकतें अगर हमारे सामने होंगी तो हमें बुरा न लगेगा क्या? अगर बच्चे गलती पर हैं तो क्या हम उन्हें प्यार से समझा भी नहीं सकते? इतना भी हमारा हक नहीं है क्या?

ममता को अगर बच्चे को समझाना है, पीटना है तो वह बच्चों को अलग ले जाकर ये काम करें… मेरे सामने नहीं। मुझे यह सब बर्दाश्त नहीं है कि मेरे सामने ऐसी हरकतें हों। अगर मेरे सामने होंगी तो मुझे तो यही लगेगा कि इन सबका कारण मैं ही हूँ। यह गुस्सा मुझ पर ही निकल रहा है।”

“आप सही कहती हो मम्मी जी। यहाँ सारी गलती ममता की है। आपका हम पर और दोनों बच्चों पर पूरा हक है। अगर आप ममता को मयंक को पीटने से मना कर रही थी… उसके बावजूद भी ममता मयंक को लगातार पीट रही थी तो यह बहुत गलत था। यहाँ पूरी ममता की गलती है। मैं अभी ममता को बुलाता हूँ।” ऐसा कह कर रजनीश ने ममता को आवाज देकर बुलाया और सवाल किया-

“क्या तुम्हें मम्मी से कोई शिकायत है? किस बात पर तुम मम्मी से नाराज हो? जरा बताने का कष्ट करोगी कि मम्मी के सामने तुमने ऐसा व्यवहार क्यों किया? क्यों मयंक को बेरहमी से पीटना जारी रखा?”

“मुझे मम्मी से कोई शिकायत नहीं है। मुझे तो गुस्सा दोनों बच्चों पर आ रहा था। एक सप्ताह से दोनों बच्चों की छुट्टी चल रही है। ये दोनों बिल्कुल भी कहना नहीं मानते। हर समय मोबाइल, टीवी में घुसे रहते हैं। इनको पढ़ने को कहो तो सांप सूंघ जाता है। रोज खेलने का सामान भी इधर-उधर फैला देते हैं फिर समेटते रहो।

जिधर नजर दौड़ाओ, मुझे काम ही काम नजर आता है। किसी काम को करने के लिए इन्हें बोलो तो ये सुनते नहीं है। एक काम करवाने के लिए इन्हें कई बार कहना पड़ता है। बहुत बार इन पर चिल्लाना पड़ता है। जिस काम को मना करो, ये वही काम करते हैं। इन्होंने मेरा दिमाग खराब कर दिया है। मैं इनको मारना नहीं चाहती, लेकिन इस तरह ये बदतमीजी दिखाएंगे, कहना ना मानेंगे तो मैं फिर से इन्हें इसी तरह ही पीटूंगी।” गुस्से से ममता ने जवाब दिया।

“क्या इस तरह मारने-पीटने से बच्चे सुधर जाएंगे?”

“मुझे नहीं पता लेकिन उन्होंने मुझे फिर से परेशान किया तो मैं इनकी फिर से पिटाई लगाऊंगी।”

“यह गलत बात है ममता। तुम इतनी बड़ी हो। दो बच्चों की माँ हो, फिर भी ऐसी बातें बोल रही हो। मुझे तुमसे समझदारी की उम्मीद थी। पता भी है कि तुम क्या बोल रही हो? तुम्हें पता होना चाहिए कि मयंक और गुंजन दोनों अभी छोटे हैं। शुरुआत से ही अगर इनको प्यार से समझाया जाए, अच्छे बुरे का भेद बताया जाए, जरूरत पड़ने पर… कहना न मानने पर इनकी हल्की-फुल्की पिटाई या सजा दी जाए तो यह ज्यादा उचित रहेगा। इस तरह बेरहमी से बच्चों को मारना पीटना सही नहीं है।

हमें बच्चों की शुरुआती गलतियों पर पर्दा डालने का काम नहीं करना चाहिए और यह काम तुम कर रही हो। जब तुम्हें पता है कि बच्चा गलती कर रहा है, कहना नहीं मान रहा तो उसी वक्त बच्चों को टोकना चाहिए, डांट लगानी चाहिए। उस वक्त बच्चों को समझाना चाहिए। अगर हम उनकी गलतियों को नजरअंदाज करते हैं तो बच्चों का मनोबल बढ़ जाता है। वे सोचते हैं कि बदतमीजी पर मम्मी पापा कुछ नहीं कहेंगे।

इसके बाद वे गलती पर गलती करते चले जाते हैं। बच्चों को बिगाड़कर क्या उन्हें फिर से अच्छा इंसान बनाया जा सकता है? क्या कोई चोर, डाकू, लुटेरा, बदमाश, दुष्ट इंसान फिर से शरीफ इंसान बन सकता है?

इसका जवाब है नहीं। इसलिए जब-जब बच्चे गलती करें तभी उन्हें रोको, टोको, समझाओ। इसके बाद भी ना मानें तो बच्चों को धमकाओ, जरूरत पड़ने पर ही पिटाई करके समझाओ। किसने रोका है? देखा जाए तो माँ बाप मजबूरी में ही बच्चे की भलाई के लिए ही पिटाई लगाते हैं।

मुझे लगता है कि इसमें कुछ गलत नहीं है, लेकिन माँ बाप को बच्चों की पिटाई करने से बचना चाहिए। जितना हो सके तो उनको प्यार से समझाना चाहिए। भरपूर गलतियां करने के अवसर बच्चों को देने के बाद एकमुश्त बच्चों को पीटना… वह भी बेरहमी से… कितना सही है? इससे बच्चों को शारीरिक चोट भी लग सकती है। देखा जाए तो कहीं ना कहीं इससे दिक्कत मां-बाप की होगी। इस तरह पीटने का कोई फायदा नहीं है।”

आगे समझाते हुए रजनीश बोले- “ममता, तुम्हें मम्मी द्वारा बच्चों के डाँटने पर, समझाने पर गुस्सा नहीं करना चाहिए था। बच्चे सिर्फ हमारे नहीं है। जितना हक इन पर हमारा है, इससे ज्यादा मम्मी का है। आइंदा इस तरह की बातें या बदतमीजी मैं सुन या देख न लूं। ध्यान रखना।”

रजनीश के समझाने पर ममता को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने मम्मी से अपने कृत्य के लिए माफी मांगी और आइंदा इस तरह की हरकत कभी न करने का वायदा भी किया।

इसके बाद रजनीश ने दोनों बच्चों गुंजन व मयंक को बुलाकर समझाते हुए कहा- “बच्चों, क्या मार खाना अच्छी बात है? क्यों पिटने के काम करते हो? इतने अच्छे व प्यारे होने के बावजूद तुम अपनी मम्मी और अम्मा का कहना क्यों नहीं मानते हो? सब लोग तुम्हारा कितना ध्यान रखते हैं।

हर जरूरत, हर जायज मांग पूरी करते हैं। फिर क्यों तुम उन्हें परेशान करते हो? यह गलत है। मम्मी-अम्मा जिस काम के लिए कहें, एक बार में सुनकर, तुम्हें सब काम करने चाहिए। जो सामान जहां से लो वही रख दो। तुम सब काम करो।

तुम्हें किसने रोका है? मोबाइल भी देखो, टीवी भी देखो, खेल भी खेलो लेकिन इनके साथ-साथ पढ़ाई भी बेहद जरूरी है। सब काम टाइम टेबल से करो। एक काम करो। अपना टाइम टेबल बनाओ और कल से टाइम टेबल से सारे काम करो। फिर देखना- किसी को तुमसे कोई शिकायत न होगी। तुम्हें भी कोई दिक्कत नहीं होगी। बताओ, करोगे यह काम।”

“ठीक है पापा जी। हम ध्यान रखेंगे और आगे से गलती का मौका नहीं देंगे। एक बार में हम सबका कहना मानेंगे, हर काम को एक आवाज में सुन लेंगे।” एक साथ दोनों बच्चों ने पिता जी को आश्वासन दिया। बच्चों को प्यार से समझाना और उनकी गलतियों पर धैर्य से प्रतिक्रिया करना बहुत जरूरी था। कुछ समय बाद ही घर का माहौल सामान्य हो गया। इस तरह रजनीश की समझदारी से घर का माहौल बिगड़ते-बिगड़ते बच गया।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा

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