समदर्शी

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राम और श्याम दो ऐसे व्यक्ति थे जो एक ही सरकारी कंपनी में समान पद पर कार्यरत थे। लेकिन उनके व्यक्तित्व और व्यवहार में बहुत बड़ा अंतर था। राम एक ऐसा व्यक्ति था जो अपने से नीचे पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ अभद्र व्यवहार करता था।

वह उन्हें निम्न दृष्टि से देखता था और उन्हें अपने से कमतर समझता था। बेरोजगार व्यक्तियों को वह अपने आगे कुछ नहीं समझता था। उनसे बात करना वह पसन्द नहीं करता था। उसको लगता था कि उनकी नौकरी न लगना, उनके कर्मों का फल है। अपनी दुर्दशा के लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं।

दूसरी ओर, श्याम एक ऐसा व्यक्ति था जो हर किसी के साथ सम्मान और आदर के साथ पेश आता था। वह अपने से नीचे पदों पर आसीन व्यक्तियों/बेरोजगारों के साथ भी बहुत ही अच्छे से पेश आता था और उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ बैठाता था। अपने व्यवहार के कारण श्याम सबका प्रिय था।

एक दिन, राम ने श्याम से कहा, “तुम इन छोटे लोगों के साथ इतना सम्मानपूर्ण आचरण क्यों दिखाते हो? यह तुम्हारे लिए उचित नहीं है। अगर तुम इन्हें इतना सम्मान दोगे, तो यह तुम पर हावी हो जाएंगे।”

श्याम ने राम की बात सुनी और मुस्कराते हुए कहा, “राम, तुम्हारी बात सुनकर मुझे थोड़ा दुख हुआ। तुम्हें लगता है कि ये लोग तुमसे कमतर हैं? लेकिन मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि हर कोई अपने आप में विशेष है। हमारे कर्म, मेहनत और भाग्य का संयोग मिल गया तो हम अच्छे पदों पर मौजूद हैं, नहीं तो शायद हम भी बेरोजगार घूम रहे होते।”

श्याम ने आगे कहा, “लाखों लोग हर साल फॉर्म भरते हैं, समान योग्यता होते हुए एग्जाम देते हैं, लेकिन चुनिंदा ही पास हो पाते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि बाकी काबिल नहीं हैं। उनकी कुछ मजबूरियां होती हैं जिस कारण वे अच्छे से एग्जाम की तैयारी नहीं कर पाते, कभी कभी एग्जाम में कुछ गलतियां हो जाती हैं जिस कारण वे मेरिट से बाहर हो जाते हैं… इसके अलावा लाखों की संख्या में अभ्यर्थी होते हैं जबकि सीटें चुनिंदा होती हैं… सबका सलेक्शन तो हो नही सकता। इसलिए ज्यादातर लोग बेरोजगार रह जाते हैं।

इसका मतलब ये नहीं कि वे काबिल नहीं है। इसके अतिरिक्त कुछ और भी ऐसे संयोग बन जाते हैं जिसकी वजह से वे सिलेक्शन नहीं पाते जैसे कि परीक्षा में प्रश्नों का चयन, परीक्षक की रुचि, परीक्षा केंद्र की स्थिति, और कई अन्य कारक जो हमारे नियंत्रण से बाहर होते हैं। इसलिए, हमें अपने से नीचे पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ सम्मान और आदर के साथ पेश आना चाहिए।”

राम श्याम की बात सुनकर खामोश हो गया। उसने श्याम की बातों को ध्यान से सुना। उसे उसकी बातों में सच्चाई नज़र आई। उसने श्याम से कहा, “श्याम, तुम्हारी बातें, तुम्हारी सोच मुझे बहुत पसंद आईं। मैं अपने व्यवहार को बदलने की कोशिश करूँगा।”

श्याम ने राम को मुस्कराते हुए कहा, “राम, मैं तुम्हारी बात सुनकर खुश हूँ। अपने से नीचे पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ सम्मान और आदर के साथ पेश आने से हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है और हमारे साथ काम करने वाले लोगों का हमारे प्रति सम्मान बढ़ता है। जितना आदर सत्कार हम इन्हें देते हैं, उससे कहीं ज्यादा सम्मान बदले में हम पाते हैं।”

उस दिन के बाद, राम ने अपने व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश की। वह अपने से नीचे पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ सम्मान और आदर के साथ पेश आने लगा। उसने अपने सहयोगियों के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहा।

राम के इस बदलाव को देखकर उसके सहयोगी और अधिकारी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने राम की प्रशंसा की और उसके काम की सराहना की। राम का आत्मविश्वास बढ़ गया और उसने अपने काम में और भी उत्कृष्टता हासिल की।

एक दिन, राम के अधिकारी ने उसे अपने केबिन में बुलाया। अधिकारी ने राम की प्रशंसा की और कहा, “राम, तुमने अपने व्यवहार में बहुत बड़ा बदलाव लाया है। तुमने अपने सहयोगियों के साथ अच्छे संबंध बनाए हैं और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हो। मैं तुम्हारी इस अच्छाई को देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूँ।”

अधिकारी ने आगे कहा, “राम, मैं तुम्हें एक नई जिम्मेदारी देना चाहता हूँ। तुम्हें हमारी कंपनी के एक नए प्रोजेक्ट का नेतृत्व करना होगा। यह प्रोजेक्ट बहुत महत्वपूर्ण है और इसके लिए तुम्हें अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम करना होगा।”

राम ने अधिकारी की बात सुनी और कहा, “सर, मैं आपका आभारी हूँ। मैं इस नई जिम्मेदारी को स्वीकार करता हूँ और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक पूरा करने की कोशिश करूँगा।”

राम ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर उस प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया। उनकी मेहनत और लगन को देखकर अधिकारी और सहयोगी बहुत प्रभावित हुए। राम का यह बदलाव उसके जीवन में एक नई दिशा की शुरुआत थी। वह अब एक सफल और सम्मानित व्यक्ति बन गया था।

लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा

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