Kavita Neh ki Komalta
Kavita Neh ki Komalta

नेह की कोमलता

( Neh ki komalta )

 

नेह ने कोमल बनाकर,वेदना को चुन लिया है,
चाह में हिय ने विकल हो,कामना को बुन लिया है।
भावना की धार अविरल, गुनगुनाती बह रही है,
प्रीति की अनुपम धरोहर, मीत से कुछ कह रही है।

आज यादों के झरोखे, अनमने से खुल रहें हैं,
शांत जल में कौमुदी की, रश्मियों से घुल रहे है।
सुप्त सी अभिलाष कोई, दीप बनकर जल रही है,
द्वेष की विद्रूप ठठरी ,हिमशिला सी गल रही है।

स्वप्न कोई रिक्त होकर, द्वार के बाहर खड़ा है,
चैन से बैचेन करता, तोड़ने पर प्रण अड़ा है।
मर्म हिय का जानकर के,अश्रु सबसे कह रहे हैं
आस के अभिनव सवेरे, बादलों में बह रहे है।

 

रचना – सीमा मिश्रा ( शिक्षिका व कवयित्री )
स्वतंत्र लेखिका व स्तंभकार
उ.प्रा. वि.काजीखेड़ा, खजुहा, फतेहपुर

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