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साँझ | Sanjh

” आपने मुझे बुलाया, डॉक्टर?”
” हाँ, हमने यह कहने के लिए बुलाया कि हम मिस्टर मेहरा को कल सुबह कॉटेज नंबर 13 में शिफ्ट कर रहें है “
डॉक्टर शर्मा के शब्दों सुन कर अंतरा के पैर काँपने लगे l उसकी आँखे बंद हों गई l

जैसे ही वह गिरने लगी कि डॉक्टर शर्मा ने लपक कर उसे सहारा दिया और कुर्सी पर बैठा दिया l उसका सिर नीचे झुका था और आँखो से लगातार आँसू टपक रहें थे l फिर उसकी एक जोरदार चीख़ निकली जो हिचकियों में बदलती चली गई l वह रुक रुक कर हिचकी लेतीं और डॉक्टर शर्मा से कहती —
” नहीं डॉ..क्ट…र, आप ऐसा नहीं…. कर सकते l मै तो यह सोच कर आपके पास आई थी कि आप राहुल को ठीक कर देंगे l “

इसके आगे शब्द निकलते कि उसके शब्दों हिचकियो में अटक कर रह गए l डॉक्टर निःशब्द खड़े शर्मा अंतरा को बड़ी मायूसी से देख रहें थे l उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अंतरा को कैसे ढाढ़स बँधाए? वह आगे बढ़े और अंतरा के कंधो पर हाथ रखते हुए बोले —

“धीरज रखो अंतरा l इस समय राहुल को मुझसे अधिक तुम्हारी जरूरत है l इस समय अगर तुम्हीं हिम्मत हार जाओगी तो राहुल तो बिल्कुल ही टूट जाएगा जो उसके लिए अच्छा नहीं है l ऐसे में वह कुछ भी कर सकता है ‘
और अंतरा को रोता छोड़ आगे बढ़ गए l

अंतरा बुत बनी वहीं न जाने कितनी देर तक बैठी रही l उसको दुनिया उसके सामने उजड़ रही थी l कई प्रश्न उसके मन में उभर उतर रहें थे अचानक उसकी चेहरे पर एक ठहराव आ कर थम गया l उसने राहुल का साथ देने की ठान ली l

आज भी उसे याद है जब उसने पहली बार राहुल को देखा था l उसके भाई का दोस्त ही तो था l दों तीन दिन बाद वह अक्सर घर आता रहता था l जब भैया पहली बार उसे घर लाया था, तो उस पर से आँखे हट ही नहीं रहीं थीं l जींस के ऊपर उसने हाफ लैदर कई जैकेट पहनी थीं जिसमे वह बेहद लुभावना लग रहा था l छः फूट कई लम्बाई, गोरा चिट्टा रंग, चौड़े कंधे, घूँघराले बाल, चौड़ा माथा, बड़ी बड़ी सजीली आँखे और दिल में उतर जाने वाली मुस्कराहट l

अंतरा को भाई के दोस्तों के सामने जाने कई आज्ञा नहीं थीं इसलिए जब कभी भी राहुल को देखती तो असहज हों जाती l जब भी वह आता, एक नए अंदाज में ही दिखाई देता और अंतरा का मन भीतर ही भीतर गमक जाता l
भैया राहुल के विषय में अम्मा को बता रहे थे तो अंतरा नए किवाड़ कई ओट ले सुन लिया l

भैया एक बेहद रहीस बाप का बिगडैल बच्चा था l जब वह 10साल का था, उसकी माँ भगवान को प्यारी हों गई थीं l पिता ने दूसरा विवाह कर लिया जो घर की मालकिन तो बन गई किन्तु राहुल की माँ कभी नहीं बन सकी l

उसके दबंग स्वभाव ने राहुल को अकेला, आवारा, जिद्दी, बदत्तमीज बना दिया था l पिता हमेशा चाहता और प्रयासरत भी रहा कि वह घर से दूर ही रहे l इसीलिए वह हॉस्टल में रह कर कैमेस्ट्री में एम. एस. सी. कर रहा था l पिता महीने में एक बार मिलने जाता और एक ब्लैकं चैक दे आता l

लेकिन भैया और अम्मा के साथ उसका व्यवहार देखने लायक होता l शायद वह अपने दोस्त के घर में अपने परिवार की छवि तलाशता था l अम्मा के प्यार और भैया के व्यवहार ने उसे बहुत बदल दिया था l

जब वह पहली बार आया तो भैया ने उसे बाहरवाले कमरे में ही बैठाया अंदर उसके लिए पानी लेने आया तो अंतरा के मुख से अनायास निकल गया —
” भैया, तुम्हारा दोस्त बहुत जोरदार है l “
भैया ने अंतरा कि बात को अनसुना कर पानी ले कर कमरे कि ओर मुड़ गया l लेकिन राहुल ने अंतरा की बात सुन ली तो मुस्करा उठा l

राहुल के जाने के बाद भैया ने अंतरा को सख्त हिदायत दी कि वह उसके दोस्तों के विषय में कोई बात न करें l
अब राहुल घर के अंदर आ अम्मा से खूब बतियाता l उस समय अंतरा घर का काम काज करती इधर उधर घूमती रहती किन्तु एक शब्द भी कभी नहीं बोलती l

इसीतरह एक साल गुजर गया किन्तु राहुल का व्यवहार दिनोदिन मृदु, अपनापन लिए, सभ्य होता चला गया और अंतरा का विश्वास दृढ़तम होता गया कि राहुल भैया के कहने से एक दम अलग है l

एक दिन राहुल घर आया तो भैया घर पर नहीं थे l वह अम्मा से बात कर बाहरवाले कमरे में इंतजार करने लगा l लगभग 15मिनट बाद अम्मा ने उसे अंदर बुला लिया और चाय की प्याली थमाते हुए बोली —
“अब तक आया नहीं l ऐसा कहाँ चला गया?” अम्मा बड़बड़ा रही थी l
“आ जाएगा अम्मा, फंस गया होगा किसी काम में या जाम में “
“बेटा यह शहर बड़ा गंदा है l बेहद गुंडागर्दी है l लड़कियो का बाहर निकलना दुश्वार है “l
“हाँ राहुल जी, वास्तव में बहुत गंदा है l यहाँ रहना हमारी मजबूरी है l अगर मेरा बस चलता तो कभी का यह शहर छोड़ कर किसी अच्छे से शहर में रहती l “
अंतरा नए कहा तो जम्भाई लेते हुए उठ खड़ा हुआ और कुछ शरारत से कहा-
” अच्छा तो आप किस शहर में रहना पसंद करेंगी? वहीं आपकी शादी करा देंगे “

राहुल के इस वाक्य पर अंतरा सकते में आ गई l उसने सोचा ही नहीं था कि उसे कौन सा शहर पसंद है? उसने राहुल के चेहरे को देखा तो कई सवाल मस्तिष्क में आ खड़े हुए l उसके मूँह से अचानक फूट पड़ा —
” मुझे कहीं नहीं जाना l मै तो यहीं रहूँगी अपनी अम्मा के साथ “
अब राहुल उसे उकसाता रहा और अंतरा में जोश भरता रहा जो एक लम्बी बहस में बदल गया और अंत में पैर पटक चिल्ला कर कहा—

” मै तुम्हें यहीं रह कर दिखाउंगी भले ही मजबूरी हो” और कमरे में चली गई l थोड़ी देर बाद जब भैया नहीं आए तो रहुल भी वहाँ से चला गया l

उस दिन के बाद न तो राहुल घर में अंदर आया और न हीं अंतरा ने उससे बात की l अंतरा का वह साल बी. एस. सी. का फाइनल वर्ष था l अंतरा ने बी. एस. सी. में मैरिट में सातवा स्थान पाया l उसकी एम. एस. सी. करने में कोई रूचि नहीं थीं अतः उसने एम. बी.ए. में की प्रवेश परीक्षा दी जिसे उसने अच्छी प्रतिशत से पास की l

उसका चयन भी हों गया लेकिन गोवा के एक कॉलेज में उसे प्रवेश मिला जिसके कारण उसे वहाँ जाना पड़ा और पढ़ाई में व्यस्त हों गई l लेकिन जब भी अकेले क्षणों में बैठती तो राहुल का चेहरा सामने आ कर चिढ़ाने लगता l जब से वह गोवा आई तब से राहुल की कोई खैर खबर उसे नहीं मिली फिर भी उसे चाह कर भी नहीं भुला पा रही थीं लेकिन राहुल उसके दिलों दिमाग़ पर छाया था, इसकी गवाह वह स्वयं थीं l

तीन साल बड़ी मेहनत करके अंतरा ने एम. बी. ए. कर तो लिया लेकिन राहुल के लिए उसकी तङप कम नहीं हुई l परिणाम से पहले उसने कई कम्पनियो से सम्पर्क साधा था जो उसे परिणाम के बाद एकदम जॉब देने को तैयार थीं l अतः एक कम्पनी ने उसे एकज़ीक्युटिव के पर नियुक्त कर ही लिया l

आज हॉस्टल में उसका अंतिम दिन था l आज से पहले उसे घर जाने कई जल्दी नहीं थीं l उसने अपना सामान पैक किया और घरके लिए रवाना हों गई l घर पहुँचते हीं सबसे पहले खुश खबरी यह मिली कि भैया की नौकरी लग गई है और अब वह शहर से बाहर रह रहा है l

जब वह अम्मा से मिली तो हैरान थी l अम्मा कमजोर नजर आ रहीं थी और बाबूजी पहले कहीं अधिक बूढ़े l वह अम्मा से लिपट रो पड़ी l अम्मा ने उससे पूछा —
“रो क्यों रहीं है?”
” अम्मा तुझे क्या हों गया? इतनी कमजोर कैसे हों गई? कुछ खाया नहीं क्या मेरे पीछे? और बाबूजी को क्या हुआ? उनका तो सब कुछ बदल गया l “
” अरे नहीं l तू बहुत दिनों में देख रहीं है इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है l सबकुछ पहले जैसा हीं है l तू चाय पिएगी? “
” हाँ, मै बनाउंगी “
कहा और रसोई में चली गई l चाय की ट्रे पकड़े अंतरा जैसे हीं रसोई से बाहर आई तो उसने अम्मा से पूछा –
” अम्मा आजकल राहुल क्या करता है? “
“उसने अपनों एम. एस. सी. पूरी कर ली थी l उसके बाद वह अपने घर चला गया था l उसके बाद उसका कुछ अता-पता नहीं l”
सुनते हीं अंतरा की सारी आशाओं पर पानी पड़ गया l वह किसी को बता भी नहीं सकती थी अतः उदास रहने लगी थी l

अम्मा बाबूजी अक्सर उसके विवाह की बात करते और एक के बाद लड़को की चर्चा करते l जब भी कोई देखने आता अंतरा कुछ न कुछ कमी निकाल टाल देती l अम्मा बाबूजी ने जब विवाह के लिए दबाव बनाया तो नौकरी ज्वाइन करने का बहाना बनाया दिल्ली चली गई l

वेतन के अतिरिक्त उसे और भी कई सुविधाएँ मिल रहीं थीं फिर भी पहले से कहीं अधिक अकेली महसूस कर रही थी l अम्मा बाबूजी अक्सर उससे मिलने आते रहते थे और शादी की बात करते तो कुछ न कुछ कह टाल जाती l अम्मा अंतरा की बढ़ती उम्र देख देख कर घुली जा रही थी l उसने छब्बीस साल पूरे कर लिए थे l यह उम्र एकदम सही थी विवाह के लिए l अम्मा कई परेशानी देख एक दिन वह अम्मा को दिल्ली घुमाने ले गई और बुद्धागार्डन में पेड़ कई छाया में बैठ कर कहने लगी —

“अम्मा, तू बेकार कई चिंता छोड़ l विवाह की बात कर न खुद परेशान हों न मुझे कर l मै शादी करना ही नहीं चाहती l मै ऐसे हीं खुश हूँ l अब कभी मुझसे शादी कई बात मत करना l”

अंतरा की बात सुन अम्मा का रंग सफ़ेद पड़ गया l वह गुमसुम सी हों कर बैठी अंतरा को टकटकी लगाए देखने लगी l अंतरा उसके मुँह को देखती रही और भीतर हीं भीतर पसीजती रही l कुछ देर बाद दोनों उठी और गाड़ी कई ओर मुड़ी और वापस घर आ गई l अगले दिन अम्मा अपने घर वापस चली गई l

एक हफ्ते बाद अम्मा फिर अंतरा के पास गई l इस बार अम्मा अकेली हीं आई थी l वह आ कर अंतरा को गले लगा फ़फ़क पड़ी l अंतरा के पूछने पर अम्मा ने बताया कि वह उसके भविष्य को ले कर बेहद चिंतित और दुखी है l अंतरा ने हँस कर अम्मा के आँसू पौछे और कहा–
“अम्मा, जब मै ठीक समझूंगी, तुम्हें बता दूँगी l फिलहाल मेरा शादी का कोई इरादा नहीं l तुम परेशान न हों l”

बेटी, अच्छा कमाती हों, सब सुविधाएँ तुम्हें मिल रहीं है, फिर शादी से इंकार क्यों? समाज में रहने के लिए शादी जरूरी है l “
“हाँ तो मै जब जरूरत महसूस करूंगी, बता दूँगी न तुम्हें l अभी मन नहीं है l”
” नहीं बेटी, ऐसा नहीं है l कभी मै भी जवान थी l मै समय की मांग को जानती हूँ l तुम कोई अलग नहीं हों l तुम्हारे मन में कोई है तो बता दों l मुझे कोई एतराज नहीं l आज नहीं तो कल साथी की जरूरत अवश्य महसूस होंगी l तब तक समय बहुत आगे निकल जाएगा और उम्र भी ढल जाएगी l हम तुम्हे खुश और सुरक्षित देखना चाहतें है l”
अम्मा के शब्दों में दम था l अंतरा सोच में पड़ गई l वह रुक कर बोली —
“अम्मा मै जहाँ कहूंगी, वहाँ शायद आप न कर पाओ “
” तू बता तो सही l साथ तो तुझे रहना है l जहाँ कहोगी, कर देंगे l हम जबरदस्ती कुछ नहीं करेंगे l”
अम्मा कर शब्दों में ठहराव नजर आ रहा था l अतः अंतरा ने हिम्मत जुटाई और बोली —
” अम्मा, मै तुम्हारे विश्वास को ठेस नहीं पहुंचाना चाहती थी इसलिए कभी न तो दिखावा हीं किया और न हीं कभी कहाl मुझे भैया का दोस्त राहुल बहुत पसंद है l मै बिना किसी को बताए गोवा चली गई और पढ़ाई पूरी करके वापस भी आ गई किन्तु इन सालो में मै उसे एक पल के लिए भी नहीं भूल पाई l अब तो यह भी नहीं पता कि वह कहाँ है,? कैसा है,?क्या करता है? कैसे ढूंढोगी उसे? यह है मेरा उत्तर l फैसला आपका होगा “
अंतरा ने कहा और वहाँ से चली गई l अम्मा सोच में डूब गई l अम्मा दों दिन और रुकी लेकिन बेहद बेमन से l जब अंतरा स्टेशन छोड़ने आई तो अम्मा ने कहा-
“मै कोशिश करूंगी उसका पता लगाने की “
” फ़िक्र न करो अम्मा l मिल गया तो ठीक है और न भी मिला तो भी ठीक है “
अंतरा ने कहा और अम्मा को ट्रेन में बैठा वापस मुड़ घर पहुंची l
आज अंतरा ऑफिस में आ कर बैठी हीं थी कि फोन की घंटी बज उठी l जैसे हीं रिसीवर कानो से लगाया तो कानो में आवाज आई —

“अंतरा घर पर तुम्हारा कोई इंतजार कर रहा है “
“अम्मा!! तुम घर पर कैसे? मै तो तुम्हे ट्रेन में बैठा कर आई थी “
इससे पहले कि कोई जवाब आता, फोन कट चुका था l अंतरा तुरंत एम. डी. ऑफिस में जा घर वापस जाने का कारण बता घर के लिए रवाना हों गई l

जैसे ही वह घर पहुँची तो दरवाज़े मे प्रवेश करते ही अपने सामने उसने राहुल को खड़े पाया l उसकी आँखे खुली की खुली रह गई l आवाज गले में अटक कर रह गई l

वह बहुत बदला चुका था l उसका चेहरा लम्बा और पीला पड़ा था l आज भी वह उन्ही कपड़ो में था जिनमे उसने उसे पहली बार देखा था लेकिन अब वे बेहद ढीले दिखाई पड़ रहे थे l उसकी स्मार्टनेस में कोई कमी नहीं थी l वह उसे देख कर स्तब्ध रह गई कि अचानक —
“हलो अंतरा! कैसी हों? कहाँ खो गई?? चुटकी बजाते हुए राहुल बोला l
” राहुल.. तुम ऐसे कैसे हों गए? “
“कैसा हों गया मै, समझा नहीं “
“तुम तो बहुत बदल गए l तुमने सेहत का कबाड़ा हीं कर दिया l क्या हों गया तुम्हे? तुमने चाय पी..?'”
” बाप रे, इतने सारे सवाल?? नहीं, तुम्हारे साथ चाय पिऊंगा “
” तो मै अभी लाती हूँ तुम्हारे मन पसंद कि चाय “
कह कर अंतरा रसोई में चली गई l शायद वह उसके सामने खड़े नहीं हों पा रहीं थी l उसके पीछे पीछे राहुल भी रसोई में चला गया और बोला —
” कुछ सहायता मै भी करूँ?? “
” नहीं बस दों मिनट और चाहिए l मै अभी लाई बना कर “
” मै तुमसे बात करने आया हूँ अंतरा “
“बस पांच मिनट और फिर चाय पर ढेर सारी बात करेंगे “
अंतरा के कहने पर राहुल ड्राइंग रूम के सोफे पर आ कर बैठ गया l ठीक पांच मिनट बाद अंतरा चाय की ट्रे ले कर उसके पास आ बैठी l फिर कप उठा राहुल को पकड़ा अपना कप होठों से लगा सिप करके एक बड़ा सा सांस खींचा l राहुल ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा–
” मेरी बात को ध्यान से सुनना अंतरा “
“राहुल प्लीज! पहले सकून से चाय पीओ और मै चेंज कर लूँ, फिर बाहर चलते है वहाँ कहीं आराम से बैठ कर बात करेंगे l”
अंतरा के कहने पर राहुल चाय पीने लगा l इस बीच किसी ने एक शब्द भी नहीं बोला l जब चाय खत्म हों गई तब अंतरा उठी और बैडरूम की अलमारी से पिंक साड़ी निकाल पहनने लगी l फिर पर्फ्यूम छिड़का और राहुल के सामने आ खड़ी हुईं l राहुल की आँखे जैसे अंतरा पर गड़ सी गई l तब अंतरा मुस्करा कर बोली —
” चलो राहुल ” लेकिन जैसे राहुल ने सुना हीं न हों
” चलो…. ” कहते हुए अंतरा ने राहुल का हाथ खींचा तो
“एँ, हाँ.. हाँ.. चलो “
कहते हुए अंतरा के साथ हों लिया l
“अम्मा, मै एक घंटे में आ जाउंगी “
कहते हुए बाहर निकल गई और दरवाजा बंद कर दिया l
“तुम मुझे यहाँ क्यों लाई?”
“वहाँ अम्मा के सामने ठीक से बातें नहीं होतीं “
“तो चलो बैठो मेरी बाइक पर “
” नहीं, बाइक यहीं छोड़ो l तुम बैठो मेरी गाड़ी में “
कहते हुए अंतरा ने गाड़ी के पास पहुँचे गाड़ी का दरवाजा खोला और स्वयं ड्राविंग सीट पर तथा दूसरी पर राहुल को बैठा गाड़ी स्टार्ट कर दी l पूरे रास्ते दोनों ने चुप्पी साधे रखी l शायद दोनों के पास शब्द नहीं थे l अंतरा ने गाड़ी एक कैफे के पास पार्क कर दी l अंदर जा कर दों आइसक्रीम का ऑर्डर दे अंतरा बोली —
” कहो राहुल, अब बताओ क्या बात करने आए हों “
” अंतरा मुझे तुम्हारे डिसीज़न का पता है l “
“कैसा डिसीज़न राहुल?”
” जो तुमने अम्मा को बताया “
“तुम्हे कैसे पता चला “
” अम्मा ने हीं बताया था l उन्होंने ट्रेन से उतर कर किसी बूथ से मुझे फोन मिलाया था l वह जानती है कि मै दिल्ली में हीं हूँ l तुमने न तो कभी किसी से कुछ कहा और न ही मुझे कुछ जाहिर होने दिया, फिर किसी को भी तुम्हारे मन का पता कैसे चलेगा? “
अंतरा राहुल की बातें चुपचाप सुनती रही l राहुल के चुप होने पर अंतरा ने कहा–
“राहुल मेरा फैसला अटल है l मै तुम्हारा भी फैसला जानती हूँ फिर यह बताओ कि तुम मुझसे इतने दिनों के बाद मिलने यहाँ क्यों आए?” कह कर अंतरा खड़ी हों गई l राहुल ने उसका हाथ पकड़ा और कहा–

“अंतरा, तुम्हें मना करना मजबूरी है l तुम बिना जाने कुछ भी निर्णय नहीं ले सकती l यह ठीक नहीं है l क्या तुम मेरे परिवार के विषय में जानती हों?”
“जानती हूँ l लेकिन वह अतीत है और मुझे वर्तमान में जीना अच्छा लगता है l मेरा वर्तमान सिर्फ तुम हों l “
“अंतरा तुम सक्षम हों l मुझसे भी अच्छे लडके मिल जाएगे”
“बिल्कुल मिल जाएगे और अब से अधिक सुख सुविधा भी लेकिन तुम नहीं मिलोगे “
“तुम एक बात पर अड़ क्यों जाती हों?”
” मै अपने मन के साथ रहना चाहती हूँ, उसके साथ जीना चाहती हूँ l मन को बाँट कर जीना मेरे वश के बाहर है l और फिर फैसला मेरा है तो मेरा हीं रहने दों l इसमें बहस करने से क्या लाभ? मै इस समय तुम्हारा फैसला सुनना चाहती हूँ l “

राहुल अंतरा के चेहरे पे आँख गड़ाए उसके पाषाण जैसे फैसले को देख रहा था और अंतरा दृढ से दृढ़तर होतीं जा रही थी l फिर राहुल ने अपनी आँखे उस पर हटा नीचे कर ली l फिर एक विश्वास के साथ बोला –

“ठीक है अंतरा मै तुम्हारे फैसले के सामने हार गया l मै शादी के लिया तैयार हूँ l लेकिन एक बात अवश्य बताना चाहूंगा कि मै तुम्हारा साथ ज्यादा देर तक नहीं दे पाउँगा और न हीं कुछ सुख सुविधा l मुझे पिछले तीन सालो से
स्पाइनल टी. बी. है जिसका कोई इलाज नहीं l क्या तुम अब भी तैयार हों?”

राहुल की बात सुन अंतरा का रंग सफ़ेद पड़ गया l उसने सोचा ही नहीं था कि राहुल लाइलाज बीमारी से ग्रस्त है l वह बुत की तरह स्थिर हों गई थी और उसकी बंद आँखो से झर झर आँसू बह रहे थे l वह दाहिने हाथ से अपनी छाती दबाए थी l राहुल उसे देख कर घबरा गया l वह उसके पास पहुंचा और कंधो से पकड़ उठा गले लगा लिया l अंतरा जल्द ही उससे अलग हों संभली और दृढ हों कर बोली —

“राहुल तुम्हारा कोई भी हाल, मेरा फैसला नहीं बदल सकता l मै आखिरी साँस तक तुम्हारा साथ निभाऊंगी l”
“तो ठीक है, मै तुम्हारा फैसला अम्मा को बता दूंगा l फिर जैसा वह चाहेंगी ” –गालों पर लुढ़के आँसूओ को पौछतें हुए वह बोला l

उसके बाद दोनों उठे और गाड़ी में बैठ घर के लिया रवाना हों गए l अंतरा खुश भी थी और दुखी भी l सुख-दुख के इस मेल ने अंतरा में एक विचित्र बदलाव ला दिया था l उसे एक ओर अपना आँचल चाँद तारों से भरा दिखाई दे रहा था तो दूसरी ओर आँचल से एक एक करके तारे टूटते हुए भी नजर आ रहे थे l दोनों गंभीर बने बैठें थे l कब घर आ गया पता ही नहीं चला l अंतरा ने गाड़ी गैराज में पार्क की और राहुल अपनी बाइक पर सवार हों वापस चला गया l अंतरा उसे पत्थर बनी देख रहीं थी l

ठीक एक हफ्ते बाद राहुल का पत्र आया l उसमें शादी की तारीख लिखी थी साथ ही यह भी कि विवाह में कोई आडंबर या दिखावा न किया जाए l पहले वह कोर्ट विवाह करेगा फिर बेहद सादे ढंग से रस्मो रिवाज़ के साथ फेरे लेगा l उसके साथ पांच दोस्त अवश्य होंगे l बाबूजी ने पत्र पढ़ा तो चेहरे पर कोई खुशी नहीं दिखाई दी l

शादी का दिन आया l अंतरा अपने माँ बाबूजी की प्रतीक्षा में थी l राहुल के आने से दों घंटे पहले अंतरा की माँ पहुंची थी l आने पर अंतरा ने पूछा —
” माँ बाबूजी क्यों नहीं आए? “
” उनकी तबियत ठीक नहीं थी l तेज बुखार चढ़ा है l”
अम्मा के कहने के अंदाज से अंतरा समझ गई थी कि बाबूजी नाराज है l उसने तपाक से कहा–
” कोई बात नहीं अम्मा l बाबूजी नाराज है फिर भी शादी तो हों ही जाएगी “l
राहुल आया और एक सुनिश्चित कार्यक्रम के अनुसार विवाह सम्पन्न हुआ और अम्मा जाने की तैयारी में लग गई l उसने अंतरा से कहा–
” यह लड़का भयंकर रूप से बीमार है l इसका ख्याल रखना l “
” हाँ अम्मा l इलाज तो चल ही रहा है फिर भी इसे किसी जगह दिखाऊंगी l ठीक हों जाएगा l बस दुआए करना “
अंतरा के कहते ही अम्मा की आँखो से आँसुओ के झरने बहने लगे l उसने सामान उठाया और राहुल के दोस्तों के साथ चली गई और अंतरा जी-जान से राहुल की सेवा में लग गई l

दोनों को ज्ञात था कि राहुल की बीमारी लाइलाज है लेकिन फिर भी एक दूसरे को बहलाते रहते थे l अंतरा तसल्ली देती कि वह ठीक हों जाएगा और राहुल मुस्करा कर समर्थन करता किंतु भीतर ही भीतर दोनों घुट रहे थे l मुंबई जाते समय किसी ने बताया था कि गढ़वाल के पास नम्बरा क्षेत्र में एक छोटा सा टी. बी. सैन्टर है जहाँ की आबो हवा से ही रोगी ठीक हों जाते है l

बस उसी दिन से अंतरा के मन में राहुल के ठीक होने की आशा ने जड़ जमा दी थी l वह आपने जीवन का सूर्योदय देख रही थी l राहुल नौकरी छोड़ने को मना करता रहा किन्तु अंतरा सबकुछ खत्म करके उसे वहाँ ले गई l

सैन्टर में प्रवेश के लिए उसे किसी भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा l वहाँ के इंचार्ज डॉक्टर रवि शर्मा थे जो शायद किसी देवता का रूप थे l इलाज के साथ साथ रोगियों का मनोबल बढ़ाने में सिद्धहस्त थे l राहुल का परीक्षण दों दिन बाद किया गया l उसकी रिपोर्ट देख कर वह स्पष्ट शब्दों में बोले —

” आपने राहुल को लाने में बहुत देर कर दी l फिर भी मै अपनी जी जान से पूरी कोशिश करूंगा “
डॉक्टर का बात सुन अंतरा का धैर्य जवाब दे गया l वह सुबक पड़ी l डॉक्टर शर्मा ने कहा–

डॉक्टर का बात सुन अंतरा का धैर्य जवाब दे गया l वह सुबक पड़ी l डॉक्टर शर्मा ने कहा–
” अंतरा तुम मेरी हिम्मत और राहुल का जीवन हों l मुझे धैर्य से उसका इलाज करने दों l तुम कमजोर पड़ोगी तो मै भी निराश हों सकता हूँ l इसलिए मेरी सहायता करो “
डॉक्टर के शब्दों ने अंतरा को खुशबू में बदल दिया l वह रोना जैसे भूल ही गई l वह वहाँ डॉक्टर की निगरानी में राहुल की सेवा करती और उसे खुश रखने का हर प्रयास करती l डॉक्टर दोनों को ढाढ़स बँधाते और राहुल का बड़ी रूचि से इलाज करते l

दोनों को हस्पताल आए चार महीने हों गए थे l तमाम कोशिशों के बाद भी राहुल की हालत में सुधार आने का नाम ही नहीं ले रहा था l राहुल भी शायद समझ गया था कि अंतरा से बिछड़ने का समय आ गया है l लेकिन आज जब उसे कॉटेज नंबर 13में शिफ्ट करने को कहा गया तो दोनों की शंकाएँ सुनिश्चित हों गई थी l अंतरासमझ गई थी कि अब राहुल एक हफ्ते का मेहमान है l

अगले दिन राहुल को कॉटेज नंबर 13 में शिफ्ट कर दिया गया और अंतरा भूख प्यास को भूल राहुल की सेवा में लग गई l राहुल लगातार अंतरा के चेहरे को टकटकी लगाए तो अंतरा मुस्करा पड़ती l उसे कभी दवाई तो कभी जूस खिलाने के बाद चुटकुले सुना सुना कर हँसाती रहती और फिर अपने दोनों हाथ उसके दोंनो गालों से लगा कहती —
” अब देखना, मै कैसे तुम्हे चंगा कर खड़ा करती हूँ और वापस दिल्ली ले जाती हूँ “

राहुल उसकी बात सुन मुस्करा देता और “हाँ ” में उत्तर दें उसे तसल्ली दें देता l राहुल जब दर्द से तड़पता तो अंतरा की आँखे सावन भादों बन जाती और बिन पानी की मछली की तरह तङप उठती l वह असहाय, लाचार बनी उसे देखती रहती, सहती रहती l राहुल अपने दर्द से अधिक अंतरा की दुर्दशा देख कर आहत हों जाता l अचानक उसकी आँखो में कोई फैसला आ कर रुक गया l अंतरा ने जैसे ही महसूस किया, वह सहम गई l उसने उसे कंधे से पकड़ झींझोड़ते हुए कहा–

” राहुल… तुम ठीक तो हों न l क्या हुआ तुम्हे? डॉक्टर को बुलाऊँ क्या?? “
” हाँ.. हाँ.. मै बिल्कुल ठीक हूँ l तुम चिंता मत करो l”
मुस्करा कर राहुल ने कहा तो अंतरा की जान में जान आई l रात की दवाई दें वह राहुल के बैड पर उससे लिपट सो गई l

सुबह आँख खुली तो राहुल बिस्तर पर नहीं था l उसने इधर -उधर, अंदर -बाहर सब जगह ढूँढा किंतु राहुल का कुछ पता नहीं चला l वह भागी भागी डॉक्टर शर्मा के पास गई और उससे लिपट रोने लगी l डॉक्टर शर्मा ने पूछा —
” क्या हुआ? तुम रो क्यों रहीं हों?”
” डॉक्टर, राहुल कॉटेज में नहीं है l सब जगह ढूँढा पर नहीं मिला l”
डॉक्टर ने अंतरा को कंधो से पकड़ा और बिस्तर पर बैठा दिया और–
” रोओ मत, मै कुछ करता हूँ “
कहा और अपने कर्मचारियों को बुला राहुल को ढूंढने को कहा l दस मिनट बाद एक कर्मचारी राहुल की चप्पलें लेकर आया और उसके दस मिनट बार दूसरा कर्मचारी उसका शॉल लें कर आया l डाक्टर शर्मा ने कहा–
” मै जानता था कि एक दिन यही होगा l वह तुमसे बहुत प्यार करता है अंतरा l वह तुम्हे दर्द में नहीं देख सकता इसलिए वह तुम्हे छोड़ कहीं चला गया l अब वह तुम्हे शायद ही मिले l

“नहीं.. नहीं.. हम दों किनारे है l भले ही न मिले लेकिन चलना तो नदी के साथ साथ ही है l देख लेना एक दिन वह जरूर आएगा l आप झूठ बोल रहे हों l वह मुझे छोड़ नहीं सकता l”

कहते कहते अंतरा की आँख बंद हों गई l उसकी मुट्ठी भिच गई l वह काँपने लगी l डॉक्टर शर्मा ने अंतरा की हालत देख नींद का एक इंजेक्शन दें दिया और एक कर्मचारी को वहाँ छोड़ वापस चले गए l

नींद में भी वह हिचकियाँ लें लें कर कुछ बड़बड़ा रहीं l थोड़ी ही देर में उसकी बड़बड़ाहट बंद हों गई l पता नहीं उसकी नींद कब खुली l जब खुली तो उसने डॉक्टर शर्मा को अपने सिरहाने बैठें देखा वह उन्हें देख कर रोने लगी और डॉक्टर शर्मा उसका सिर थपथपाते हुए समझाते रहे l वह कह रहे थे —

” देखो अंतरा तुम एक बहादुर लड़की हों l राहुल ही कायर निकला l वह तुम्हारी बहादुरी का सामना नहीं पाया l सम्हालो अपने आपको l शायद यही नियति है l जितनी जल्दी मान लोगी उतने ही जल्दी अपने पैरो पर खड़ी हों पाओगी l तुम्हारे सामने बहुत लम्बी ज़िंदगी पड़ी है l इसे साहस से जियोगी तो आसानी से जी पाओगी और बीत भी जाएगी l इतनी जल्दी हार मत मानो l”

” लेकिन डॉक्टर, मै राहुल के बिना कैसे जी पाऊँगी? मेरा है ही कौन? शादी के बाद से आज ढाई साल हों गए, अपने अम्मा बाबूजी से भी नहीं मिली l पता नहींजिन्दा भी हैं या नहीं l बाबूजी मुझसे नाराज थे इसलिए शादी में भी नहीं आए थे l”

” मै समझ सकता हूँ लेकिन अंतरा न तो कोई किसी के लिए आज तक मरा है और न ही कोई मरने वाले के साथ मरता है l सबको यहीं रह कर जीना मरना है l तुम कैसे जीओगी, यह तुम पर निर्भर करता है –किसी का हाथ पकड़ कर या राहुल की राहुल की यादो के सहारे l मै तुम्हारी सहायता दोनों तरह से कर सकता हूँ l”

डॉक्टर शर्मा की बातों ने अंतरा को पत्थर बना दिया था l एक बार फिर वह सोचने को मजबूर हों गई l मुँह उठाए डॉक्टर के चेहरे को टकटकी लगा कर देखती रही l
डॉक्टर फिर बोला –

” हाँ अंतरा, l मै तुम्हारी सहायता करूंगा l जो तुम्हारे साथ आज घटा है,वह मेरे साथ दस साल पहले घट चुका है l मै दस साल पहले ऋतु को यहाँ लें कर आया था l मेरा बेटा विक्की भी छोटा ही था l माँ का दूध पीने से वह भी इसी रोग से ग्रसित हों गया था l पंद्रह दिन के अंतराल से दोनों एक एक करके मुझे अकेला छोड़ कर चले गए l यहाँ की लेडी डॉक्टर लक्ष्मी देवी ने मुझे बहुत ढाढ़स बँधाया और मै शांत हों गया l तब से स्वयं को इसी हस्पताल को समर्पित कर दिया l अब फैसला तुम्हारे हाथ में है l कौन सा मार्ग चुनना चाहोगी? “

” डॉक्टर की बात सुन कर अंतरा के मन में एक विचित्र से तीस उभरी l वह डॉक्टर शर्मा के कंधे से जा लगी और रोने लगी l वह रोते रोते बोली —
“डॉक्टर साहब, आप अपने दिल में इतना बड़ा ग़म छुपा कर जी रहे हों, मुझे तो पता हीं नहीं था “
“तुम अपना फैसला सुनाओ अंतरा, ताकि मै उस पर काम कर सकूँ l”
“डॉक्टर मै राहुल की यादो के साथ जीना चाहुगी l लेकिन मुझे कोई ऐसे काम बताइये जिसके सहारे मै आत्मनिर्भर भी हों जाऊ और लोगों की सेवा भी हों जाए “
‘ बिल्कुल, इतना बड़ा हस्पताल है, तुम कोई भी काम कर सकती हों l यहाँ के स्टॉफ के बच्चों की शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं हैं l क्या तुम छोटा सा स्कूल चला सकती हों?

शाम के समय बूढ़े लोगों को पढ़ा दिया करना l इससे तुम बीजी भी रहोगी और सेवा भी हों जाएगी l”कह कर डॉक्टर शर्मा चले गए l अंतरा को यह सुझाव भा गया l वह सोच रही थी कि डॉक्टर शर्मा ने कितने प्यार और धैर्य से उसे संभाल लिया l अब अंतरा अपने फैसले को अमली जामा पहनाने में जुट गई l

उसने कॉटेज के पास हीं बने चार कमरों में से एक में अपना सामान लगा शेष तीन कमरों में दरी बिछवा बच्चों को पढ़ाना शुरू किया l राहुल की सारी चीजे वह शहर जा बेच आई और उसका सारा कैश हस्पताल के नाम कर दिया l अब वह पूरे मनोयोग से स्कूल चलाने में व्यस्त थी l जब भी कभी राहुल को याद आती तो वह उसके साथ बिताए पलों का कैसेट चला सुनती और कभी हँस पड़ती तो कभी जी भर के रो देती l

अंतरा का स्कूल चल निकला l आस -पास के क्षेत्र के बच्चे भी आने लगे और एक प्रसिद्ध स्कूल बन गया l उसने ऊपर छत पर पांच कमरे और बनवा लिए l और उनमें से दों में हॉस्टल भी खोल दिया l

बच्चों की परीक्षाएँ समाप्त होने पर उसने बच्चों को पहलगाम घुमाने की योजना बनाई और डॉक्टर की मैटाडोर में बच्चों को बैठा पहलगाम पहुँच गई l रास्ता लम्बा था अतः खाना खिलाने के लिए एक अच्छा सा ढाबा देख मैटाडोर रोक बच्चों को नीचे उतार लिया l

ढाबेवाले को चाय का ऑर्डर दें वह बच्चों को खाना बाटने में व्यस्त हो गई l तभी सामने आते हुए मिक्षुओं को देख ढाबेवाला डॉक्टर शर्मा से सीट खाली करने को कहा l डॉक्टर शर्मा अंतरा के पास जा कर खड़े हो गए l उसके बाद एक के बाद एक घुटे हुए सिर, गेरूए वस्त्र पहने भिक्षु वहाँ आ कर बैठते गए l

उनमें से न कोई किसी को दिखता न कोई कुछ बोलता l उनमें से एक ने इशारे से कुछ खाने के लिए कहा तो ढाबेवाला प्लेट रखता गया और उसका नौकर खाना परोसता गया l वे गिनती में आठ भिक्षु थे l जब वह अंतिम भिक्षु के पास गया तो तो दूर खड़ी अंतरा, जो केवल देख रहीं थी, को जैसे काठ मार गया l उसके पैरो के नीचे की जमीन सरक रहीं थी l

उसे गिरते हुए देख डॉक्टर शर्मा आगे बढ़े और गिरती हुईं अंतरा को संभाल लिया l किन्तु जब सामने देखा तो उनका भी दिमाग़ चकरा गया l सामने भिक्षु के वेश में राहुल बैठा था l गेरूए वस्त्र, घुटा हुआ सिर और पास में एक पीतल का कमंडल l

वह आँखे नीचे किया खाना खाता रहा और समाप्त होने पर नीची नजरें किए भिक्षुओं के साथ चल दिया l अंतरा उसकी एक नजर को तरसती रहा गई l
जब वे चले गए तो डॉक्टर शर्मा ने ढाबेवाले से उनके विषय में पूछा तो उसने बताया —
” साहब ये लोग ऊंची पहाड़ियों पर रहते हैं l कहाँ से आते हैं, यह मुझे भी नहीं पता? इनकी एक अलग हीं दुनिया है l इतना जरूर पता है कि जब सर्दियां आती है तो ये नीचे उतर आते हैं और भिक्षा मांग कर गुजारा करते हैं l गर्मी शुरू होते हीं आने आश्रम में लौट जाते है l

जब भी आते हैं, इनके साथ एक नया भिक्षु जरूर होता है l यह जो सबसे बाद में गया हैं, उसे चार साल पहले ये अपने साथ लाए थे l उस समय यह बहुत बीमार था l ज़िंदगी से ऊब कर मरने जा रहा था l इन्होने उसे संभाल लिया और इलाज कराया l इसकी बीमारी इतनी बढ़ गई थी कि दवाईयों के कारण इसकी आवाज चली गई l लेकिन अब यह ठीक हैl साहब, ये जरूरत पड़ने पर हीं बोलते है l

किसी नए आदमी को देखता हूँ तो पूछ लेता हूँ , इसलिए मुझे इसके विषय में पता है l साल में ये दों बार मेरे पास खाना खाने आते है l मै भी पुण्य का काम समझ कोई पैसा नहीं लेता l”

ज्यों ज्यों ढाबेवाले की बात आगे बढ़ रही थी अंतरा कि आँखे पहले आँसू , फिर हिचकी और फिर हिस्टिरिक होती जा रही थी l वह डॉक्टर शर्मा के कंधे से लग सुबक उठी और डॉक्टर शर्मा उसके सिर पर हाथ फिरा भारी गले से कह रहें थे –

“यही भाग्य है इंसान का, अंतरा l यहाँ इंसान कुछ नहीं कर सकता l शांत हो जाओ l “
“लेकिन डॉक्टर साहब, एक जिन्दा इंसान की यादो के सहारे जीना कैसे संभव है? अब मै क्या करूँ? राहुल को मेरे ऊपर भरोसा ही नहीं था l शायद वह सोच रहा होगा कि मै उसकी बीमारी से तंग आ कर उसे छोड़ दूँगी इसीलिए वह मुझे छोड़ कर चला गया l क्या करूँ? कैसे जिऊँ?”

डॉक्टर शर्मा निशब्द थे l समझ हीं नहीं पा रहें थे कि क्या किया जाए? क्या कहा जाए? क्या निर्णय लिया जाए? टूर पूरा किया जाए या वापस मुड़ा जाए l अंतरा को कैसे संभाला जाए? वह स्वयं पशोपेश की स्थिति से जूझ रहें थे l
अंतरा जिसने अभी चहकना शुरू किया था फिर से. अँधेरे के गर्त में जा गिरी थी l

उसकी ज़िंदगी में फिर से शाम का धुंधलका छा गया था l उसकी जवानी एक खंडर बन कर उसके सामने खड़ी थी l उस दिन के बाद वह काम तो सब करती किन्तु एक जिन्दा लाश बन कर रहा गई थी l

हर साल वह उसी जगह जाती कभी बच्चों के साथ तो कभी डॉक्टर शर्मा के साथ l वहाँ से लौट कर आती तो पहले कहीं अधिक गुमसुम और थकी हुईं बिल्कुल उस डूबती शाम की तरह जो जीवन से कभी नहीं ढली और सूरज कभी नहीं दिखा l

Sushila Joshi

सुशीला जोशी

विद्योत्तमा, मुजफ्फरनगर उप्र

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