Sankalp Poem

संकल्प | Sankalp Poem

संकल्प

( Sankalp )

 

आज फिर पराजित हुआ हूं
फिर से अपनी काबिलियत को पहचान नहीं पाया

आज खुद की ही नजरों में गिरा हूं
बन गया हूं अपना ही खलनायक
आज फिर पराजित हुआ हूं

सोचा था,
मंजिल का सामना करेंगे,
किंतु ,हिम्मत ही जवाब दे गई
अफसोस हुआ है मुझे
अपने आप पर
चाहता तो जीत सकता था
लेकिन ,शर्मसार हूं खुद पर
स्वीकार है मेरी भूल मुझे
आज फिर पराजित हुआ हूं

पर ,जानता हूं
संघर्ष मे जीत हार स्वाभाविक है
स्थाई कुछ भी नहीं होता

पराजित ही हुआ हूं
जुनून जीत का पक्का है
जीतना ही है मुझे
और ,रहूंगा भी जीतकर
इसी संकल्प के साथ
फिर उठना है मुझे
दिखानी है अपनी काबिलियत
मैं हारा हुआ हूं खुद से भले
किंतु हार को स्वीकार नहीं किया हूं
और यही मेरे जीत की निशानी भी है

नौशाबा जिलानी सुरिया
महाराष्ट्र, सिंदी (रे)

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