संस्कार | Sanskar par kavita
संस्कार!
( Sanskar )
राम का संस्कार फिर देश में लाया जाए,
पीकर आँसुओं को न जीवन बिताया जाए।
खत्म हुआ समाज से छोटे- बड़े का अदब,
भरत का वो कठोर तप सबको बताया जाए।
लोग खौफजदा हैं आजकल के माहौल से,
बाग की बुलबुल को बहेलिए से बचाया जाए।
ठीकेदार बन बैठी घरों में पाश्चात्य सभ्यता,
उसकी अर्द्ध नग्नता पे बाण चलाया जाए।
घर में आई बहू वो भी किसी की है बेटी,
अपनी बेटी के जैसा उसे अदब दिया जाए।
माता – पिता होते हैं भगवान के जैसा,
उनका वो सम्मान वापिस दिलाया जाए।
पश्चिमी सभ्यता ही खोली वृद्धाश्रम का द्वार,
इच्छामृत्यु का संदेश घर-घर पहुँचाया जाए।
नहीं रही महाराज शान्तनु की भौतिक शरीर,
इस नवीन पीढ़ी को देवव्रत बनाया जाए।
किसी की बहन-बेटी पे बुरी नजर मत डालो,
जीते-जी मोक्ष का वो गुल खिलाया जाए।
कब निकल जाएगी इस भाड़े के घर से साँस,
आओ संस्कार से अहंकार को हराया जाए।
बिना संस्कार दिए मत दो बच्चों को सुविधा,
चारित्रिक पतन से उनको बचाया जाए।
नहीं खरीद सकते संस्कार, वो खिलौना नहीं,
आओ नई नस्ल को श्रवणकुमार बनाया जाए।