संस्कारों का गुलाब

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संस्कारों का गुलाब

( Sanskaron Ka Gulab ) 

 

माता पिता के संस्कारों का गुलाब हूं,
हर किसी गालों का गुलाब थोड़ी हूं।

 

 

हर   फूलों   का   जो   रस   चखे
मैं   ऐसा   भंवरा   थोड़ी  हूं।

 

 

हर दिलों से शतरंज का खेल खेलू
ऐसा  दिलों  का  दलाल थोड़ी हूं।

 

 

स्वार्थ में जिस्म का पर्दा जो बेचें
उन  पर्दों  का  तलबदार थोड़ी हूं।

 

 

मिरी  दिलों  में  सीता,  मरियम है
मै राधिका मां, हनीप्रीत का थोड़ी हूं।

 

 

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Dheerendra

लेखक– धीरेंद्र सिंह नागा

(ग्राम -जवई,  पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )

उत्तर प्रदेश : Pin-212218

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