Sant Kumar Sarthi Poetry

संत कुमार सारथि की कविताएं | Sant Kumar Sarthi Poetry

आया मौसम प्यार का ( दोहा )

आया मौसम प्यार का, अधर हुए कचनार।
फागुन मास बसंत का, होली का त्यौहार।।

टेसू पर भी चढ़ गया, अजब निराला रंग।
आया मौसम प्यार का, मदन मास के संग।।

मन मेरा करने लगा, प्रणय मिलन पर शोध।
आया मौसम प्यार का, मधुकर वचन प्रबोध।।

आया मौसम प्यार का, मन में उठे हिलोर।
कामदेव तन मन जगा, नाच रहे मन मोर।।

गीत होली का

होली रंगों का त्यौहार,होली रंगों का त्यौहार
सद्भावों का रंग निराला ,बढे़ परस्पर प्यार। ‌
होली……..
मस्त महीना फागुन आया अधर हुए कचनार
पवन बसंती उड़े गगन में,मन में हर्ष अपार।
होली……..
खिल रहे फूल चटक रही कलियां, गुलशन है गुलजार
मद मस्ती में भंवरा झूमे, पाने को अतिसार। ‌
होली……
चंग मजीरे बजे बांसुरी, पायल की झंकार
दे दे ताली नाच रहे सब, गाये राग धमार।
होली……..
अठखेली नंदलाल बाल संग, करे गोप की नार
भर पिचकारी रंग उकेरे, रंगों की बौछार।
होली…….
राधा के संग कान्हा खेले, खेल रही बृजनार
करे गोपियों संग ठिठोली,रहे चटक रंग डार।
होली……
भीग रहा है तन मन सारा, भीग रहा संसार
शरण सारथी की सुध लेना, जग के पालनहार।
होली……..

चेतना

कुछ तो सोच समझ इंसान ।
तेरी नेकी और बदी को, देख रहा भगवान।

1.करना क्या था, करता क्या है, किया कभी क्या ध्यान,
झूठ कपट छल माया मोह में भूल गया पहचान।
कुछ तो सोच…

2.दुर्बल दीन गरीबों का तू ,किया सदा अपमान,
अपने मतलब की खातिर तू , बेच रहा ईमान।
कुछ तो सोच…

3.जोड़-जोड़ धन भरी तिजोरी ,बॅ॑गले आलीशान,
मात पिता की कदर न जानी ,वह नर पशु समान।
कुछ तो सोच…

4 माया का अंधकार निराला ,झूठी ‌ तेरी शान ,
सभी पड़ा रह जाए तेरा ,तू दो दिन का मेहमान।
कुछ तो सोच…

5.जीवन ढ़लती फिरती छाया, समय बड़ा बलवान,
पता नहीं किस कौन घड़ी में, हो जाए अवसान।
कुछ तो सोच…

6.जो आया है वह जाएगा ,कहते वेद पुराण,
कहे ‘सारथी’ हरी नाम से, हो तेरा कल्याण।
कुछ तो सोच …

शिव भक्ति ( दोहे )

ध्यान मग्न रहते सदा, करे हिमालय वास।
शंकर भोलेनाथ है, करते पूरण आस।।

माला सर्पों की गले, वस्त्र पहनते खाल ‌।
देवों में महादेव है, कालों के है काल।।

बैठ संग में गोरिजा, कार्तिक और गणेश।
छोटा सा परिवार है, जग में देव महेश।।

आक धतूरा भंग का, करते हैं प्रिय पान।
मृगछाला तन पर सजे, बसे आप शमशान।।

प्रथम नमन करते सभी, गौरी पुत्र गणेश।
शंकर सुत गणराज का, सूंड सुडाला वेश।।

नीलकंठ के शीश पर, हरदम बहती गंग।
कर त्रिशूल बिराजता, सोहे गले भुजंग।।

शंकर सुमिरन नित करें, मिटते तीनों ताप।
ऐसे दीनदयाल है, करे निरंतर जाप।।

विनती मेरी भी सुनो, हे जग कृपा निधान।
शरण पड़ा हूं आपके, देना भक्ति वरदान।।

महा शिवरात्रि ( मनहरण घनाक्षरी छंद )

जटाधारी भूतनाथ, पशुपति उमानाथ,
नागधारी नीलकंठ, कालकूट पान है।

गले में भुजंग सोहे,भालचंद्र मन मोहे,
देवों में हो महादेव ,देते वरदान है।

हरते हैं तापआप ऋषि मुनि करे जाप,
करते हैं वारे न्यारे, बसे शमशान है।

भस्मी रमाते अंग, गिरिजा बनाए भंग,
पल में भंडार भरे, करते जो ध्यान है।

हठयोगी उमाकांत जटाधारी शिवाकांत,
विष धारी सोमनाथ नीलकंठ नाम है

ज्योतिर्लिंग पशुपति शिवभोले गोरा पति।
आदिनाथ आशुतोष रूप अभिराम है

शिवदानी महादानी दूसरा नहीं है सानी
भोलेनाथ वरदानी पाया ना मुकाम है

कालों के हो महाकाल भगतों के प्रतिपाल
दीनबंधु दीनानाथ तुमको प्रणाम है।

सादगी ( मनहरण घनाक्षरी )

सादगी का मान करो, सदा गुणगान करो,
छोड़ो झूठे चोचलों को, सौ बातों का सार है।

सादगी है आन बान, सारे सुखों की है खान,
गांधी नेहरू जी ने किया, सादगी से प्यार है

सुंदर है विचार जहां, सादगी भंडार वहां,
झूठ का व्यवहार नहीं, होता सत्कार है।

लाल बहादुर शास्त्री , सरल विचारशील,
सादगी की जीवन में, महिमा अपार है।

अध्यात्मिक चिंतन ( ताटंक छंद मात्रा )

केवल स्वार्थ जाग रहा है, धन पाकर इतराता है।
चक्रव्यूह में फॅ॑स कर मानव,भजन नहीं कर पाता है।
जो जन्मा है वह जाएगा, काल सभी को खाता है।
कर्मों का सब लेखा-जोखा, जीव चुकाने आता है।

शाम सवेरे सुमिरन करना, रहता मंगलकारी है।
सदाचार के पथ पर चलना,करना चिंतन जारी है।
दीनहीन कीसेवा करना,फल मिलता अतिभारी है।
सतसंगत करना संतन की, मिटती व्याधा सारी है।

जिसको जग में समझे अपना, तू झूठा बिलमाया है।
खाली हाथ चले जाना है, पड़ी रहेगी माया है।
सेवा करना मात पिता की, उसने सब कुछ पाया है।
मिले परम पद जग में उनको, सदा हरी गुण गाता है।

बुजुर्ग ( दोहे )

अनुशासन अनुवरत का ,बुजुर्ग देते ज्ञान।
जो इनका पालन करें, निशिदिन हो कल्यान।।

आज बुजुर्गों की कही, बातें आती याद।
कितनी सुंदर कथ गए, नहि माने अपवाद।।

ठोकर खा खा कर भये, अनुभव उम्रदराज।।
मार्गदर्शन आजतक, हमें दिखाते आज।।

जीवन में हरदम करें, बुजर्ग का सम्मान।
सन्मार्ग की प्रेरणा, मिलती निश्चित जान।।

बातें कभी बुजुर्ग की, देना कभी नकार।
पछतावा हो अंत में, इनको दिया बिसार।।

गांधी तेरे देश में ( कुंडलिया )

गांधी तेरे देश में, हिंसा करती नृत्य।
नर ही नर को मारता, होते नित कुकृत्य।।
होते नित कुकृत्य, शाख नफरत की फलती।
हुआ निरंकुश हाल, नहीं अनहोनी टलती।
कौन सुने फरियाद, सितम की आई आंधी।
देखो आकर देश, बचाओ फिर से गांधी।

मकर संक्रांति

देते हैं शुभकामना, बढें निरंतर प्यार।
मंगल दायक वर्ष हो, सुखदायक त्यौहार।।

उत्तरायण आया रवि, मकर राशि में आज।
योग बना संक्रांति का, रहे सुखद आगाज।।

सौहार्द सद्भाव की, उड़ने लगी पतंग।
पेंच लड़ाने छिड़ गई, आसमान में जंग।।

कनकौओं ने व्योम में, ऐसी भरी उड़ान।
कई जगह पर हो गए, पंछी लहूलुहान।।

कहने को तो देश में, अलग-अलग है प्रांत।
कोई कहे पोंगल इसे, कोई कहे संक्रांत।।

गुड़ तिल के लड्डू बने, और बने पकवान।
दान पुण्य करते सभी, चीनी चावल धान।।

आसमान में उड़ रहे, इंद्रधनुषी रंग।
जीवन के आकाश में, उड़े हमेशा संग।।

मिले हमें संदेश है, छूना है आकाश।
भेदभाव सब भूलकर, महकाओ मधुमास।।

चौपाई बद्ध

नवल वर्ष बेला शुभ आई।
तन पुलकित मन देत बधाई।

परम पुनीत शुभद संभारी।
सकल चराचर मंगलकारी।

नाशत रोग हरे सब पीरा।
अनुनय विनय सुनो रघुवीरा।

दीन हीन संतन हितकारी।
अनुसर अनुवृत आश तिहारी।

शुभ संवत सुखदायक शेषा,।
भव व्याधा प्रभु हरहु कलेषा।

विशद भाव संतत सद गेहा।
परम प्रताप सदा हित नेहा ।

कुसुमित हो यह देश हमारा।
मिटे दोष भव ख्याति अपारा।

शरण सारथी की सुध लीजै।
अनुरत भक्ति दान मम दीजै।

चौपाई बद्ध

नवल वर्ष बेला शुभ आई।
तन पुलकित मन देत बधाई।

परम पुनीत शुभद संभारी।
सकल चराचर मंगलकारी।

नाशत रोग हरे सब पीरा।
अनुनय विनय सुनो रघुवीरा।

दीन हीन संतन हितकारी।
अनुसर अनुवृत आश तिहारी।

शुभ संवत सुखदायक शेषा,।
भव व्याधा प्रभु हरहु कलेषा।

विशद भाव संतत सद गेहा।
परम प्रताप सदा हित नेहा ।

कुसुमित हो यह देश हमारा।
मिटे दोष भव ख्याति अपारा।

शरण सारथी की सुध लीजै।
अनुरत भक्ति दान मम दीजै।

शुभ हो नूतन साल तुम्हारा : चौपाई

नवल वर्ष बेला शुभ आई।
तन पुलकित मन देत बधाई।

परम पुनीत शुभद संभारी।
सकल चराचर मंगलकारी।

नाशत रोग हरे सब पीरा।
अनुनय विनय सुनो रघुवीरा।

दीन हीन संतन हितकारी।
अनुसर अनुवृत आश तिहारी।

शुभ संवत सुखदायक शेषा,।
भव व्याधा प्रभु हरहु कलेषा।

विशद भाव संतत सद गेहा।
परम प्रताप सदा हित नेहा ।

कुसुमित हो यह देश हमारा।
शुभ हो नूतन साल तुम्हारा।

शरण सारथी की सुध लीजै।
अनुरत भक्ति दान मम दीजै।

आंखें

आंखें जग में है अनमोल, जिसका कोई नहीं है तौल
आंखें हैं तो सकल जहान, बिन आंखें सब लगे वीरान
आंखें कुदरत का उपहार, सुख-दुख का होता इजहार
आंखों से होती पहचान, आंखें हैं चेहरे ‌की शान
आंखों में बसता है प्यार, आंख बढ़ाएं क्रोध अपार
आंखोंसे जब मारे तीर, करती घाव बड़ा गंभीर
आंखें जब दर्शाती भाव, लाज शर्म है या दुर्भाव
आंखें चेहरे की मुस्कान, सपने सजते हैं प्रतिमान
आंखों से मुख मंडल नीका, बिना नयन जीवन है फीका
आंखें बदले जब-जब रंग, ईर्ष्या नफरत होती जंग
आंखों से बढ़ता है रूप, कमलनयन सुंदर स्वरूप
आंखों से जल बरसे नीर, मन की कसक बताते पीर
मृगनयनी कजरारे नैन, कर देते घायल बेचैन
आंखें जीवन का आधार, बिना आंखें सूना संसार
आंखें चेहरे का है नूर, जीवन में खुशियां भरपूर

अध्यात्मिक चिंतन – ताटंक छंद

केवल स्वार्थ जाग रहा है, धन पाकर इतराता है।
चक्रव्यूह में फॅ॑स कर मानव,भजन नहीं कर पता है।
जो जन्मा है वह जाएगा, काल सभी को खाता है।
कर्मों का सब लेखा-जोखा, जीव चुकाने आता है।

शाम सवेरे सुमिरन करना, रहता मंगलकारी है।
सदाचार के पथ पर चलना,करना चिंतन जारी है।
दीनहीन कीसेवा करना,फल मिलता अतिभारी है।
सतसंगत करना संतन की, मिटती व्याधा सारी है।

जिसको जग में समझे अपना, तू झूठा बिलमाया है।
खाली हाथ चले जाना है, पड़ी रहेगी माया है।
सेवा करना मात पिता की, उसने सब कुछ पाया है।
मिले परम पद जग में उनको, सदा हरी गुण गया है।

आलसी

वंचित रहता आलसी , रहे लक्ष्य से दूर।
कर्मठ ही पाता सदा, उचित तय लाभ भरपूर।।

कंचन काया कामिनी

कंचन काया कामिनी, कटि कमनीय कमान।
रंभा जैसी अप्सरा, मंद मंद मुस्कान।।
मंद मंद मुस्कान, खिली हो चंपा डाली।
मधुरिम मधुरिम बोल, लबों पर सोहे लाली।।
कोटि-कोटि कंदर्प, विभावित अनुगत माया।
पड़े बदन पर धूप, चमकती कंचन काया।।

संकट


गणनायक गणराज का प्रथम नमन कर ध्यान।
संकट मिटते हैं सभी, रखते सब का मान।।

संकट मोचन नाम है, पवन पुत्र हनुमान।
मेटे सकल विकार को, तुम बल बुद्धि निधान।।

जगदंबे ज्वालामुखी, करती संकट दूर।
भक्तों की रक्षा करें , फल देती भरपूर ।।

महंगाई की मार से, संकट में आवाम।
राहत मिलती है नहीं, जीना हुआ हराम।।

संकट में हर आदमी, कैसे मिले निजात।
कौन सुने अब दास्तां, कौन सुने जज्बात ।।

आये संकट की घड़ी, पीड़ा या अवसाद।
अपने ही मुख मोड़ ले, मौन हुई मरजाद।।

कितने संकट झेल कर, पाली जो औलाद।
नहीं ,बुढ़ापे में सुनें, अब कोई फरियाद।।

खाने के लाले पड़े, संकट में सरकार।
हालत पाकिस्तान की, है अरबों का भार।।

छठ पूजन की धूम

छठ पूजा की धूम है, सभी करे उपवास।
सूरज साक्षी मानकर, करे कामना खास।।

छठ पूजन के व्रत से, मिलता है वरदान।
वांछित फल सबको मिले, सुखी रहे संतान।।

छठ पूजन की धूम है, नदी घाट गुलजार।
अनहोनी होती नहीं, बढ़े निरंतर प्यार।।

छठ मैया में जो रखें, श्रद्धा भाव अपार।
अर्घ्य सूर्य के सामने, देते हैं नर नार।।

गन्ना हल्दी लीजिए ,पूजा शहद कपूर।
श्रीफल निंबू थाल में,रखें लाल सिंदूर।।

गुड़ अरु चावल की सरस,बने, प्रसादी खीर।
ग्रहण करे सब शौक से, कष्ट हरे रघुवीर।।

छठ का पूजन

छठ मैया की अर्चना , करते हैं उपवास।
सूरज साक्षी मानकर, करे कामना खास।।

छठ पूजन के व्रत से, जीवन का वरदान।
वांछित फल सबको मिले, सुखी रहे संतान।।

सुख संपति की कामना, घर मंदिर गुलजार।
अनहोनी होती नहीं, बढ़े निरंतर प्यार।।

छठ मैया में जो रखें, श्रद्धा भाव अपार।
अर्घ्य सूरज सामने, देते हैं नर नार।।

गन्ना हल्दी लीजिए ,पूजा शहद कपूर।
श्रीफल निंबू थाल में,रखें लाल सिंदूर।।

गुड़ अरु चावल की सरस,बने, प्रसादी खीर।
ग्रहण करे सब शौक से, सहायक है रघुवीर।।

धनतेरस : दोहा बद्ध


धनतेरस के दिन हुआ, धन्वंतरि अवतार।
आरोग्य के देवता ,पूज रहा संसार।।

सागर मंथन से हुआ, जिन का प्रादुर्भाव।
हाथ लिये अमृत कलश, अनुरंजक अनुभाव।।

निरुज किया संसार को, अद्भुत किया इलाज।
वैद्य चिकित्सक कर रहे, जिनका पूजन आज।।

करते सभी उपासना, लक्ष्मी संग गणेश।
सुख सौहार्द प्रेम का, बड़ा सुखद परिवेश।।

दीपों का त्यौहार है, सजे हुए बाजार।
घर में लाते हैं सभी, नए-नए उपहार।।

झालर दीपों से सजे, घर घर मंगलाचार।
बर्तन और मिठाईयां, लाते घर नर नार।।

मंगलमय सबको रहे, धनतेरस त्यौहार।
प्रेम बधाई ह्रदय से, कर लेना स्वीकार।।

दीपावली की शुभकामनाएं : आल्हा छंद

कार्तिक कृष्णा आए अमावस, आता दीपों का त्यौहार।
लक्ष्मी पूजन घर-घर होता, मना रहा सारा संसार।

करें सफाई घर आंगन की, रंग पुताई सजते द्वार।
रंग बिरंगी करें रोशनी , सुन्दर सजे हाट बाजार।

त्रयोदशी के दिन आता है, धनतेरस का शुभ त्यौहार।
सागर मंथन से जो निकला, अमृत कुंभ कलश अवतार।

धन्वंतरि जी लिए हाथ में, मेटे विपदा दोष विकार।
करे चिकित्सक उनकी पूजा, प्रेम सहित करते जयकार।

आयुर्वेद के जनक कहाये, महिमा जिनकी बड़ी अपार ।
दीर्घायु बने जीवन सबका , सुखी रहे सारा संसार।

धन तेरस को पूजन करते, देव कुबेर भरे भंडार।
इस दिन बर्तन सोना चांदी, रहे खरीद सभी नरनार।

बनते हैं पकवान सभी घर, मन में खुशियां भरी अपार।
आई बड़ी दिवाली सजते, अपने घर के तोरण द्वार।

कुंभ कलश नवग्रह की पूजा, होती लक्ष्मी के दरबार।
सनमुख देव गणेश विराजे, विनती करते बारंबार।

श्रीफल पान फूल फल मेवा, थाल आरती रहे उतार।
जगमग दीप जले घर घर में, सुंदर रोशन दीप कतार।

हाथ जोड़कर करें वंदना, सदा रहे गुलशन गुलजार।
मंगलमय हो जीवन सबका, बरसे खुशियों की बौछार।

रहे निरंतर भाई चारा , बढे़ परस्पर प्रेम अपार।
रहे मुबारक सदा दिवाली ,कहे सारथी संत कुमार।

मां सरस्वती वन्दना

साहित्य संगीत गुनी, प्रथम नमन करें,
करते आह्वान मैया, करें गुणगान है।

वीणापाणि कला देवी, शारदे तिहारा नाम
सुर नर मुनि तेरा, धरते जो ध्यान है।

एक हस्त ग्रंथ सोहे, आसन कमल मोहे,
धवल वसन तेरा, ममता की खान है।

बौद्धिक विकास करें, चेतना का रंग भरे,
हरती अज्ञानता मां, देती वरदान है।

बुढ़ापा पर दोहा

कठिन बुढ़ापे की डगर, हाथ पैर लाचार।
आंखों से दिखता नहीं, पनपे रोग हजार।।

डरा बुढ़ापा देखकर, दिखता यम का द्वार।
बात कोई सुनता नहीं, सुत दारा परिवार।।

कानों से सुनता नहीं, थर-थर काॅ॑पे गात।
काया दुर्बल हो गई, टूट गए सब दांत।।

देख बुढ़ापा सोचता, झूठा सब संसार।
मतलब के सब लोग हैं, मतलब का व्यवहार।।

बचपन बीता खेल में, रहा जवानी जोश।
अंत बुढ़ापे में करें, मन ही मन अफसोस।।

खड़ा बुढ़ापा शीश पर, मंजिल तेरी पास।
हरि सुमिरन तेरे संग में, काटे यम की त्रास।।

करनी भरनी साथ में, जाती नर के संग।
अंत समय लगने लगे, सपने भी बदरंग।।

भरी जवानी साथ में, देख बुढ़ापा दूर।
जो तेरे अरमान थे, हुए आज सब चूर।।

खिला पुष्प मुरझा गया, रहा नहीं मकरंद।
टहनी टूटी डाल से, मिटा भरम का फंद।।

दर्द बुढ़ापे का बड़ा, बदले सब हालात।
रक्तचाप कैफ शर्करा, बढे़ विषम अनुपात।।

शूरवीर बलवान भी, रखते धरती तोल।
आया बुढ़ापा सामने, चले गये अनबोल।।

सूरज है आदर्श हमारा

आलोकित होता जग सारा
सूरज है आदर्श है हमारा।

पूर्व में फैली है लाली
उड़े पखेरू डाली डाली

जग का दूर करे अंधियारा
सूरज है आदर्श हमारा।

अंधकार को दूर भगाए
आशा की नित जोत जगाये

प्रातः काल की सुंदर बेला
बड़ा अनुपम कुदरत खेला

तुम ही जीवन के आधारा
सूरज है आदर्श हमारा।

पंछी चहके कलियां चटकी
डाल डाल चमगादड़ लटकी

चढ़ता सूरज करें उजाला
जन जीवन का है प्रतिपाला

दूर करे जग का अंधियारा
सूरज है आदर्श हमारा।

चढ़ता सूरज करे उजाला
सकल जगत के हो प्रतिपाला

शाम हुई छोड़ी है लाली
करे आरती लेकर थाली

नक्षत्रों में अजब निराला
प्रचंड तेज अरु रूप विशाला

सूरज सौरमंडल का तारा
लगता है हमको अति प्यारा

आलोकित होता जग सारा
सूरज है आदर्श हमारा।

राम

एकं राम घट घट बसे, दूजे दशरथ धाम।
सकलसृष्टि में जो रमे, महज नाम श्री राम ।।

रावण

राम राज सपना हुआ,अब है रावण राज।
होते रहते हर घड़ी ,उलटे पुलटे काज ।।

मां सिद्धिदात्री ( दोहे )

सिद्धि की दात्री तूं ही, जग की पालनहार।
तीन लोक में गूॅ॑जती, तेरी जय जयकार।

कमलासन मां बैठती, सोहे साड़ी लाल।
चार भुजाएं मां सजी, शीश मुकुट छवि भाल।।

शंख सुदर्शन चक्र है, गदा कमल है हाथ।
नवरस व्यंजन फूल फल, चढ़ता मेवा साथ।।

कन्या पूजन भोज का, करते ध्यान विशेष।
करें कृपा जगदंबिका, मिटते सकल क्लेश।।

जप तप पूजा अर्चना, से जो करता ध्यान।
सभी सिद्धियों का मिले, माता से वरदान।।

सिद्धिदात्री रूप नवम, पूजे जगत जहान।
रोग शोक सब दूर कर, रखे भगत का मान।।

नवरात्र ( माहिया छंद )

मां रूप निराला है।
जग जननी मैया
तूं जग प्रतिपाला है।

तुम विघ्न हरण कारी।
करे पलक में दूर
हरती दुविधा सारी।

तुम चंड मुंड मारे।
शक्ति तेरी अपार
कर असि खप्पर धारे।

मां टेर सुनो मेरी।
दो भक्ति का दान
तूं मत करना देरी।

दुर्गा अष्टमी ( महागौरी )

नवराता का आठवां, दिवस शक्ति अवतार।
शंकर के वरदान से, पाया रूप अपार।।

आदि शक्ति जगदंबिके, गौर वर्ण हैं गात ।
श्वेत वसन तन पर सजे, मैया तू अभिजात।।

वृषभ वाहिनी कर सजे, डमरू अरु तिरशूल।
अभय दान देकर करें, नष्ट अमंगल मूल।।

श्रीफल मेवा का लगे हलवा पूरी भोग।
श्वेत पुष्प अर्पण करें, बने सुखद संजोग।।

कालरात्रि

नव दुर्गा का सातवां, मां कालरात्रि रूप।
रणचंडी विकराल है, नमन करे सुर भूप।।

गर्दभ वाहन मात का, और भुजाएं चार।
पहले कर हथियार है, दूजे कर तलवार।।

वर मुद्रा कर तीसरा, अभय भाव सम चार।
रजनीगंधा फूल से, बहुत अधिक है प्यार।।

पूजन होवे मात का , गंधक गुड अरु धूप।
सकल सिद्धि ब्रह्मांड की, अर्चन के अनुरूप।।

त्रिलोचन मां कालका, आलोकित गल माल।
पावक तेरे श्वास में , निकले मुख विकराल।।

चामुंडा चंडी तुही, उर भुज नयन विशाल।
श्यामल तेरा है बदन, सिर के बिखरे बाल।।

खड़्ग धारिणी अंबिके, दे ऐसा वरदान।
बाधाएं सब दूर कर, भक्त अनाड़ी जान।।

कवि : संत कुमार सारथि

नवलगढ़

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