सरसी छंद : गीत
सरसी छंद
( Sarsi Chhand )
करते हो किन बातों पर तुम , अब इतना अभिमान ।
आज धरा को बना रहा है , मानव ही शमशान ।।
करते हो किन बातों पर तुम …
भूल गये सब धर्म कर्म को , भूले सेवा भाव ।
नगर सभी आगे हैं दिखते , दिखते पीछे गाँव ।।
मानवता रोती है बैठी , सुन्न पड गये कान ।
पत्थर के महलों में रहकर , पत्थर है इंसान ।।
आज धरा को बना रहा है ….
माया के पथ पर चलकर ही , खोई है पहचान ।
असली दौलत से मानव अब , रहता है अन्जान ।।
किसको देवे दोष आज हम , सूना पड़ा विहान ।
सुख की खातिर भटक रहा है , मानव बन शैतान ।।
आज धरा को बना रहा है…
क्यों मुर्गे की बाँग सुने यह , क्यों कागा के बोल ।
व्यर्थ ही शोर मचाते हैं यह , पास घड़ी अनमोल ।।
मिटा फूस के घर को देखो , बनता आज महान ।
जंगल-जंगल उजड़ गये है , राहें हैं वीरान ।।
आज धरा को बना रहा है ….
रही नही देखो अब छाया , राही हैं हैरान
तरस रहे पानी को सब ही , कोई नही निदान ।।
काले-काले मेघ दिखे जो , लाये अब तूफान ।
दिखा रही है प्रकृति सभी को , सबकी ऊँची शान ।।
आज धरा को बना रहा है ….
अभी समझ लो भाई मेरे , कुदरत का फरमान ।
ढ़ह जायेगी दुनिया सारी , होंगे नहीं मकान ।।
दौलत के दम पर कितने दिन , पाओगे सम्मान ।
पानी वाले बादल अब तो , दिखते न आसमान ।।
आज धरा को बना रहा है …..
करते हो किन बातों पर तुम , अब इतना अभिमान ।
आज धरा को बना रहे क्यों , तुम ही अब शमशान ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )
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