Satire in Hindi

दूरस्थ दर्शन | Satire in Hindi

दूरस्थ दर्शन

( Doorasth darshan )

 

दूरदर्शन वालों ने हमें दिखने का हक नही दिया केवल देखने का हक दिया है। उन्हे रंगीन देखने के लिये हमें सात हजार रूपये खर्च करना पडे । हमारी भी इच्छा है कि हमारे घर वाले और मोहल्ले वाले हमें मूर्ख डिब्बे में देखे।

आंचलिक आम आदमी, आंचलिक साहित्यकार, आंचलिक कलाकार होने से क्या लाभ जिसे दूरदर्शन पर न दिखाया गया हो । निरर्थक है हमारा साठ वर्ष का होना और साधना करना।

इससे तो अच्छा था कि किसी कव्वाल की पार्टी का तबलची हो जाता या किसी चल समारोह का चल व्यक्ति हो जाता, जिससे कि मटककर टेलीविजन पर दिखने का मौका तो मिल जाता। मुझे तो लगता है सभी चेनलों का यह अन्र्तराष्ट्रीय षड़यंत्र है कि मुझे दूरदर्शन पर न दिखाया जावे।

ये सारी चेनलें कुत्ते बिल्ली और कीडे मकोडो तक को दिखला देती है सिवाय हमारे। धन्य है उन कीड़े मकोड़ो की माताएं जिनके बच्चे दूरदर्शन पर दिख जाते है । उन्होने मां के दूध का हक अदा कर दिया।

मुझे तो मेरन्ट जी से जलन होती  है जो हमारे पड़ोस में रहते है । वे एक रैली में ठेके पर घटना से दिल्ली गये थे । रेल में मुफ्त में बैठे । रास्ते भर लूट कर मुफ्त की चाट खाते गये । षोडषियों पर दृष्टि चिपकाते-चिपकाते दिल्ली पहुंच गये । जब समाचार खुद ही दिल्ली पहुंच जावे तो दूरदर्शन वाले दूर क्यों जावे ।

वे उटपटांग हरकते करते करते आ गये कैमरे के फोकस में। दरदर्शन वालों ने उन्हें क्या दिखलाया वे हो गयेे आल पटना और आल मोहल्ला फेमस। हरेक आदमी से मुझे नीचा दिखाने के लिए कहते है तुमने मुझे फलां दिन देखा था रैली में। स्पष्ट तस्वीर थी।

उन्होंने खुद के सम्मान में एक विशाल भोज दे डाला । मैं दूरदर्शन चैनलों की अकर्मण्यता के कारण उस नकारा आदमी के नीचे पिच गया।

एक हम है जो अक्सर लिखते और कभी कभी छपते रहते है। दूरदर्शन वालों ने आविष्कार होने के बाद से अभी तक हमारी मदद नही ली । तब से अब तक गंगा से मालुम नहीं कितना पानी फालतू बह गया ।

कोई दूरदर्शन वाले को बताओं रे कि हम उस पर दिखने के लिए कब से मूक साधना कर रहे है। सम्पादक महोदय, हमारा ये लेख उन तक पहुंचा देना। मैं आपको एक प्रति और डाक खर्च के पैसे संलग्न कर रहा हॅॅू ।

अब मैं दूरदर्शन पर दिखने के लिए पांच साला योजना पर कार्य कर रहा हॅू। मैं ने कुछ भजन मण्डलियों में नाम लिखवा लिया है जिससे आस्था सा संस्कार चेनल पर आ सकंू। कुछ कव्वालियों की पल्टन में टोपी लगा कर बैटने लगा हॅू ।

हमारे क्षेत्र की नृत्य एवं नाटक मण्डलियों में हिस्सा बढ़चढ़ कर लेने लगा हॅू। मेरी शर्त यह है कि मैं दरवान या भगवान बनने पर भी अपना चेहरा नहीं पोतूंगा। ऐसा न हो कि नाटक में भाग मैं लॅू और कलुआ कहे कि  देखो वो मैं हॅू ।

नियमित रूप से नेताजी की सभाओं में जाने लगा हॅू और आगे बैठ कर मटक मटक कर उनका भाषण सुनता हॅू, और जोर जोर से तालियां बजाता हॅू ।

आगे बैठने के सिलसिले में कई बार झगड़ कर पिट चुका हॅू । मैं नहीं चाहता कि मुझे कहना पड़े की नेताजी की सभा में पीछे से तीसरी पंक्ति में बायें से पांचवां धब्बा मैं हॅ।

हमारे मन्त्रीजी दूरदर्शन पर कितने अच्छे लगते है। वे कैमरे की तरफ ही देखते रहते है। पब्लिक की तरफ नहीं देखते। आखिरकार वे डेढ़ सौ लोगो की तरफ देखें या एक अरब लोगो की तरफ। मेरी तरफ कैमरा आता है तो मैं हाथ ऊॅचे करके जोर जोर से जय जयकार करने लगता हॅू पर कैमरा हर बार मुझे छोड़ देता है।

क्विज प्रोग्राम में हिस्सा लेने के लिए मैं मनोरमा, जनरल नालेज की पुस्तके, लिम्का बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड और गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड पढ़ने लगा हॅू। मेरा सामान्य ज्ञान तो बढ़ गया, मैं दूरदर्शन पर नहीं आ पाया । मयाप्तम रामत्वम् कुशल वसुता न एवधिगता।

हमारे सारे अधिकारों की तरह दूरदर्शन पर आने के हमारे अधिकार भी मन्त्रीजी, नेताजी, चन्द मटक कवियों, चन्द गायको, अभिनेताओें, राजनायिको, सचिवों इत्यादि ने झटक लिये है। ऐसा नही है कि थोड़ा खिसक जावें और हमें भी जगह दे देवें ।

मैं दूरदर्शन पर दिखने के लिये अब काॅच चबाने लगा हॅॅू, ऊपर से सिर के बल कूदने लगा हॅॅू, इल्लियां खाने लगा हॅू, मिट्टी में गड़कर समाधि लगाने लगा हॅू। आदि से इत्यादि तक खतरनाक कर्तव्य करने लगा हॅू। मेरी जान जाना सार्थक हो जायेगा यदि मैं दूरदर्शन पर दिख जांऊ।

 

 

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लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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