Sawan mein Nahin Aaye Bhartar
Sawan mein Nahin Aaye Bhartar

सावन में नहीं आए भरतार

( Sawan mein nahin aaye bhartar )

 

राह तक रही ये अंखियाॅं जो प्रेम दीवानी तेरी,
साजन के बिन है अधूरी प्यारी सजनी ये तेरी।
तेरे बिना साजन ये सावन लग रहा सूना-सूना,
कब आओगे हमें बतादो तड़पे ये चाॅंदनी तेरी।।

विरह में ऐसे तड़प रहें जैसे नही बदन में जान,
सूने बाग-बगीचें में तेरी ढूॅंढ रहें आज पहचान।
गुमसुम यह हमारा मन कैसे झूमें सखियों संग,
जब आओगे प्रियवर तुम तब आएंगी मुस्कान।।

कैसे करे ये श्रृंगार सावन में नहीं आए भरतार,
नहीं ये मेहॅंदी रचती है नहीं यह लहंगा जचता।
विरह में तड़प रहें है जैसे खुशियाॅं लगती कम,
नहीं यह झूला हमें सुहाता सावन सूना लगता।।

नहीं कोयल की कूक है एवं नहीं मोर आवाज़,
कैसे करें हम श्रृंगार न पिया के कोई समाचार।
अब विरह की पीड़ा हमारी समझो आप ईश्वर,
कितना करवाओगे और प्रियवर का इन्तजार।।

किसको क्या बताएं हम भूख- प्यास लगे कम,
ना चिट्ठी ना कोई सन्देश वो गए है ऐसे परदेश।
थक गई अब मेरी अंखियाॅं राह तुम्हारी तकते,
अब आ जाओ ना तरसाओ बालम अपनें देश।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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