डॉ.सत्यवान सौरभ की सात बाल कवितायेँ
1. छोटे-छोटे पंछी
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखलाते।
उड़ते ऊँचे आसमान में,
मंजिल की ये राह दिखाते।।
ये छोटे-छोटे जीव मगर,
इनसे ये नभ भी हारा है।
आत्मबल से ओत-प्रोत ये,
मिल उड़ना इनको प्यारा है।
बड़े-बड़े जो ना कर पाए,
पल भर में ये है कर जाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखलाते।
लड़ते हैं ये तूफानों से,
उड़ सूरज से भी बात करें।
पंख रुकते हैं कब इनके,
सागर, पर्वत भी पार करें।
कोमल काया के हैं लेकिन,
सदा हौंसले ये आजमाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखलाते।।
तिनके-पत्ती जोड़-जोड़ सब,
रहे घरोंदे हैं सभी सजा।
इच्छा जो दाने-पानी की,
कमा श्रम से, ले हैं मजा।
प्यारी-सी एक सीख देकर,
अंतर्मन को है हर्षाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखलाते।।
अपने घर, गलियां नगर में,
यदि मधुर स्वर गुंजाना है।
मनुज सहेजे पंछी-पंछी,
गीत यही अब मिल गाना है।
ये नन्हे हैं मित्र हमारे,
हमसे बस ये आस लगाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखलाते।।
2. ठंड हुई पुरजोर
लगे ठिठुरने गात सब,
निकले कम्बल शाल।
सिकुड़ रहे हैं ठंड से,
हाल हुआ बेहाल।।
बाहर मत निकलो कहे,
बहुत ठंड है आज।
कान पकते सुनते हुए,
दादी की आवाज।।
जाड़ा आकर यूं खड़ा,
ठोके सौरभ ताल।
आग पकड़ने से डरे,
गीले पड़े पुआल।।
सौरभ सर्दी में हुआ,
जैसे बर्फ जमाव।
गली मुहल्ले तापते,
बैठे लोग अलाव।।
धूप लगे जब गुनगुनी,
मिले तनिक आराम।
सर्दी में करते नहीं,
हाथ पैर भी काम।।
निकलो घर से तुम यदि,
रखना बच्चों का ध्यान।
सुबह सांझ घर पर रहो,
ढककर रखना कान।।
लापरवाही मत करो,
ठंड हुई पुरजोर।
ओढ़ रजाई लेट लो,
उठिए जब हो भोर।।
3. कम्प्यूटर
कम्प्यूटर एक अनोखी चीज़,
छोटे-बड़े सभी का अजीज़।
घर, बिजनेस, स्कूल और दफ्तर,
काम चले न बिना कम्प्यूटर।
काम सभी ये झटपट करता,
बजे रेडियो, टीवी चलता।
इसमें फोटो, पेंटिंग, खेल,
कैलकुलेटर, वीडियो, मेल।
गाता गाने, है हर भाषा,
पूरी करता सबकी आशा।
गिनती में ये सबसे तेज,
तुरंत चिट्ठियाँ देता भेज।
इसमें दुनिया भर का ज्ञान,
इतिहास, गणित और विज्ञान।
नए दौर का टीचर-ट्यूटर,
मन को भाता है कम्प्यूटर।
4. दूधवाला
घर-घर आता सुबह शाम,
ड्रम दूध के हाथों में थाम।
दरवाजे पर आवाज लगाता,
संग में लस्सी भी लाता।
सुबह-सुबह जल्दी है उठता,
उठकर दूध इकट्ठा करता।
साफ-सफाई रखता पूरी,
तोल न करता कभी अधूरी।
मिलावट से है कतराता,
दूध हमेशा शुद्ध ही लाता।
आंधी, वर्षा, सर्दी, गर्मी,
भूल सदा समय पर आता।
सही समय पर आता दर पर,
चाय बने तभी तो घर पर।
सबको भाता ये मतवाला,
नाम है इसका दूधवाला।
5. प्यारी चिड़िया रानी।
सुबह-सुबह नन्ही चिड़िया,
आँगन में जब आती है।
फुदक-फुदक कर चूं-चू करती,
मीठे गीत रोज सुनाती है।।
चिड़िया फुर्र फुर्र उड़ती है,
चोंच से दाने चुगती है।
बच्चों को है देती खाना,
सबसे पहले उठ जाती है।।
छज्जा, खिड़की ढूंढें आला,
कहाँ घोंसला जाए डाला।
तिनका थामे चिमटी चोंच में,
सपनों का नीड सजाती है।।
उम्मीदों के पंख पसारकर,
नील गगन को उड़ पार कर।
जीवन की कठिनाई झेलती,
अपना हर धर्म निभाती है।।
उठो सवेरे और करो श्रम,
प्रगति इसी से आती है।
बच्चों, प्यारी चिड़िया रानी,
हमको यह सिखलाती है।।
6. नानी
नानी! मुझको, बात बताओ,
मम्मी हैं संतान तुम्हारी।
एक बार उनसे तुम कह दो,
सुन लें दिल की बात हमारी।।
पढ़ लो, पढ़ लो कहती है,
सूझे न उनको और।
बच्चे खेलें सारे देखो,
करे न मुझ पर गौर।।
मन चाहे मैं बाहर घूमूँ।
मस्ती सब के साथ करूँ।
खेलूँ दौड़ू सबके संग मैं,
कुश्ती में दो हाथ करूँ।।
जी भर के मैं तैरूँ जाकर,
पकड़े तो मैं हाथ न आऊँ।
बचपन चाहता केवल मस्ती,
सबको मैं ये बात बताऊँ।।
नानी-नानी कहो मम्मी से,
इस बंधन को दूर भगाएँ।
हम सब बच्चे घर से निकलें,
खेलें-कूदें मौज मनाएँ।।
7. चिट्ठी
चिट्ठी जब-जब आती है,
अलग सूचना लाती है।
चिट्ठी में सुख-दुःख की बातें,
प्यार भरी इसमें सौगातें।
जहाज़, रेल, बस, नाव से,
मीलों तय कर आती है।
चिट्ठी जब-जब आती है।।
आता डाकिया घर के द्वार,
भरकर लिफाफे में प्यार।
छोटे से कागज़ में लिपटी,
संदेश नया सुनाती है।
चिट्ठी जब-जब आती है।।
चिट्ठी एक सुंदर उपहार,
जोड़े सबके दिल के तार।
करके दुनिया भर की सैर,
बिना पैर चली आती है।
चिट्ठी जब-जब आती है।।
चिट्ठी में फरमाईश है,
रिश्तों की आजमाईश है।
हाल-चाल की बात पूछती,
प्रेम भाव सिखलाती है।
चिट्ठी जब-जब आती है।।
डॉo सत्यवान सौरभ
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा
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