कविता शादी | Shaadi par Kavita
कविता – शादी
( Shaadi )
चल रहे है रिश्ते क्यों
समझ बात नहीं आती l
गृहस्ती रूपी गाड़ी
पटरी पर दौड़ी जाती l
शादी पवित्र बंधन ये
भारत भूमि बतलाती l
मित्रता है अस्त्र हमारा
दुनिया को सिखलाती l
परंपरा संस्कार हमारे
दो जीवन मिलवाती l
साथी का हाथ न छूटे
सात फेरे दिलवाती l
रिश्तो के धागों मे बंधी
जिंदगी गुजरी जाती l
खुशी में हो या गम में
पत्नी साथ निभाती l
पति प्यार में डूबी ऐसे
सुबह शाम ढल जाती l
ढाल बने पति परमेश्वर
जीवन सफल बनाती l