एक शक्की पत्नी | Shakki patni par kavita
एक शक्की पत्नी
( Ek shakki patni )
एक शक्की पत्नि अपने पति पर शक करने लगी,
मन ही मन में उसके बारे में नई नई कहानी गढ़ने लगी।
मेरा पति शाम को ऑफिस से देर से क्यों आता है ?
शायद किसी लड़की के साथ गुलछर्रे उड़ाता है।
छुट्टी के दिन भी क्यो दफ्तर जाता है ?
शायद किसी लड़की के साथ पिकनिक मनाता है।
जब कोई दो या तीन की छुट्टियां पड़ती है,
तो इसमें एक या दो दिन के कैजुअल लीव मिलाता है,
कोई न कोई दफ्तर के टूर बहाने फोरन टूर बनाता है,
शायद सिंगापुर या मलेशिया जाता है,
और किसी नव युवती के साथ मौज मस्ती मनाता है,
जब कोई मोबाइल पर फोन आता है,
तो ये घर से बाहर निकल जाता है
शायद किसी लड़की से इश्क भी लड़ाता है,
कभी कभी मेरे पति का टिफिन ज्यों का त्यो आ जाता है,
शायद कोई दफ्तर की लड़की इसके लिए कोई नई चीज बना कर लाती होगी,
और अपने हाथों से इसको प्रेम से खिलाती होगी।
इसलिए टिफिन वापिस ज्यों का त्यो आ जाता है।
सैलरी भी इनकी तीसरे हफ्ते में खत्म हो जाती है,
इसलिए हमे दूसरो से उधार लेना पड़ता है,
शायद यह फिजूलखर्ची करता है
और अपनी सैलरी लड़कियों पर लुटाता है
ये सारी बाते उसके मन में घर करती जा रही थी,
और पत्नी के मन में शक की सूई आगे ही बढ़ती जा रही थी।
पति का शरीर भी कमजोर होता जा रहा था,
उसके घर जा गुजारा कैसे चलेगा ये फिक्र उसे सता रहा था
साथ ही पति पर महंगाई का बुखार चढ़ता जा रहा था
घर का गुजारा कैसे करे ये फिक्र उसे सता रहा था।
हर चीज के दाम आसमान को छूते जा रहे थे
दूसरी तरफ उधार देने वाले उधार देने से कतरा रहे थे
महंगाई की इस मार से बेचारा पति क्या करता,
इस महंगाई से लड़ने के लिए वह ओवर टाइम करता
छुट्टी के दिन भी वह पार्ट टाइम जॉब भी करता,
जब कोई लम्बी छुट्टी पड़ती अपने बॉस की खुशामद करता,
ताकि टूर प्रोग्राम बनाकर कुछ पैसे बेचारा बचाता।
ताकि टूर प्रोग्राम में कुछ पैसे बच जाए,
और उसके घर का खर्च ठीक से चल जाए।
पत्नी केवल अपने ही शक में मग्न थी,
क्योंकि वो घर के खर्च से बेफिक्र थी।
एक दिन वह अचानक पति के दफ्तर पहुंच गई,
पति को देखते ही उसकी किल्ली निकल गई।
पति बेचारा ही दफ्तर में अकेला ही काम कर रहा था,
बिना खाना खाए ही वह ओवर टाइम कर रहा था।
खाना खाने की उसे फुरसत नहीं थी,
क्योंकि निश्चित टाइम में उसे काम पूरा करना था,
अपने बॉस को इसका हिसाब देना था और खुश करना था।
तभी उसे ओवरटाइम मिलना था
बाहर के टूर प्रोग्राम के लिए गिड़गिड़ा रहा था,
और अपने पुराने टी ए बिल पास करा रहा था।
तभी उसने अपनी पत्नि को भीचक्के से देखा,
और उससे दफ्तर आने का कारण पूछा,
पत्नि आने का कारण न बता सकी और रो पड़ी,
रोते रोते उसके चरणों में गिर पड़ी और कहने लगी,
मै बिना वजह ही आप पर शक कर रहीं थी,
बिना बात ही अपनी जिंदगी शक के कारण तबाह कर रही थी।
रचनाकार : आर के रस्तोगी
गुरुग्राम ( हरियाणा )
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