किया था प्यार मगर | Shayari pyar ki
किया था प्यार मगर
( Kiya tha pyar magar )
किया था प्यार मगर हमनें जताया ही नही।
वो कैसे जानती जो हमने बताया ही नही।
रहा अफसोस हमेशा ही से ये दिल मे मेरे,
क्यों ये जज्बात मेरे दिल के दिखाया ही नही।
किया था प्यार मगर….
दबा दिया दिल में ख्वाहिशों को खुद अपने।
कदम को खींच लिया कुछ भी ना कहाँ उससे।
क्या बताते उसे हम हाल ए वफा की बन्दिश,
इसलिए मैने कभी प्यार जताया ही नही।
किया था प्यार मगर…..
मन में इक टीस सी है दिल से जो जाती ही नही।
सब्र के आसूँ भी अब नयन मे रूक पाती नही।
ना ग़म बताया कभी मैने ना मजबूरी कही,
इसलिए खुल के कभी सामने आया ही नही।
किया था प्यार मगर…..
बाद वर्षो मिले है फिर हम उसी चौराहे पर।
केशु खींजाबी मगर आँखों मे वही प्यार लिए।
तबसे बेचैन जिगर बार बार ये कहता है,
सुन रे “हुंकार” उसे अपना बनाया क्यो नही।
किया था प्यार मगर……
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कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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