Sheh aur Maat
Sheh aur Maat

शह और मात

( Sheh aur maat ) 

 

चाहत को रखो झील की तरह
मंथर गति से हि इसे बहने दो
लहरों का वेग तो बस धोख़ा है
कदमों को जमीं पर ही रहने दो

नजारे हि देते हैं दिखाई परिंदों को
बसेरा मगर वहाँ कहीं नहीं मिलता
लौटकर आना होता है उन्हे वहीं
अपनों से अलग ठिकाना नहीं मिलता

हमराज तो होंगे कई तुम्हारे
हमदर्द की भी तलाश कर लेना
खुदगर्ज इंसानों की बस्ती है यहाँ
हमकदम की भी तलाश कर लेना

बेहतर है आज का अकेलापन
कटती नहीं साथ के बाद की तन्हाई
वफा की बातों पर न करना ऐतबार
ऐनक के पीछे रहती है छिपी बेवफाई

रहेंगे न राहों मे सदा हम तुम्हारी
वीरानी की राहों में तुम अकेले हो
सफर नहीं आसा, है खबर मुझे भी
जिंदगी के शह और मात मे तुम अकेले हो

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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