शिद्दत | Shiddat
शिद्दत
( Shiddat )
मजबूरी में दिलों को श्मशान होते देखा है,
शिद्दत की चाहतों को गुमनाम होते देखा है,
देखा है बड़े गौर से तड़पती हुई निगाहों को,
प्रेम में वफा को भी बदनाम होते देखा है।
लगे प्रीत जिन नैनों से उन्हें भुलाया नहीं जाता,
जिस दिल को हो इश्क उसे समझाया नहीं जाता,
ये जिस्म इस जन्म दूर हुआ तो क्या हुआ?
किसी भी जन्म प्रेम रंग को मिटाया नहीं जाता।
ये बेरुखी ये अश्क ये ज़ख्म सबको दिखाते क्यों हो ?
मोहब्बत की है तो दर्द का हिसाब लगाते क्यों हो ?
लगातें हो तो लगा लो अपनी जिद खुदा से,
हैं वफा तो कदमों को पीछे हटाते क्यों हो ?
करो इश्क तो करते ही रहो किसने मना किया,
कितना डुबाया खुद को प्रेम में कितना फना किया?
जला दो गर मोम को तो वो पिघलता जरूर है,
देखो अंधेरे को जागकर सूरज निकलता जरूर है,
वो बंधन नहीं, बेड़ियां है जो तोड़नी पड़े,
वो मोहब्बत भला क्या मोहब्बत जो छोड़नी पड़े?
पीना चाहता हैं ये जमाना इश्क को शराब की तरह,
प्रेम तो होता है कांटों में किसी गुलाब की तरह।
रचनाकार: शिवानी स्वामी
गाजियाबाद, ( उत्तर प्रदेश )