Shikshak diwas par kavita

शिक्षक की अभिलाषा | Shikshak diwas par kavita

शिक्षक की अभिलाषा

( Shikshak ki abhilasha )

 

चाह नहीं बी एल ओ बनकर,

रोज गांव में टेर लगाऊं।

चाह नहीं संकुल बी आर सी,

चक्कर कांटू मेल बनाऊं।।

 

चाह नहीं डाकें भर भर के,

बनूं बाबू सा मैं इतराऊं।

चाह नहीं मध्यान्ह चखूं और,

राशन पानी घर ले जाऊं।।

 

मुझे छोड़ दें बच्चों संग बस,

कक्षा  में  रहनें  दें  आप।

सत्य कहूं “चंचल” ईमान से,

अनपढ़ता कर दूंगा साफ।।

 

 

( शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामना के साथ ) 

🌸

कवि भोले प्रसाद नेमा “चंचल”
हर्रई,  छिंदवाड़ा
( मध्य प्रदेश )

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