श्री कृष्ण स्तुती

( Shri Krishna Stuti ) 

 

कंस के अत्याचारों से,
धरती जब थर थर कपीं थी।
अब आ जाओ हे अंतर्यामी,
यह करुण पुकार सुनाई दी।

त्राहि त्राहि जब मची धरा पर,
तब ईश्वर ने अवतार लिया।
भक्तों के संकट हरने को,
मनुज रूप स्वीकार किया।

हे तीनों लोकों के स्वामी,
हम तेरी शरण में आए हैं।
हे असुर निकंदन! देवकी नंदन,
हम सब दुष्टों के सताए हैं ।

बंसी की मधुर ध्वनि से जो,
सबको वश में कर लेते हैं,
सुर, नर, मुनि , गंधर्व, यच्छ,
प्रभु आपका वर्णन करते हैं।

भरी सभा में द्रुपद सुता ने
जब केशव कह कर पुकारा था,
बहना की लाज बचाने को,
प्रभु ने साड़ी का ढेर लगाया था।
इक टुकड़े के बदले में,
प्रभु दौड़े दौड़े आए थे।

ग्राह से जब गज लगा हारने,
श्री हरि की टेर लगाई थी।
छोड़ के अपना धाम मेरे प्रभु ,
नगें पैर दौड़ के आए थे।

इस पूरी सृष्टि के जो,
आधारस्तम्भ कहलाते हैं।
उन परमानंद परमेश्वर के,
हम चरणों में शीश नवाते हैं।

जो हैं अजेय जो हैं अनंत,
मैं प्रति दिन ध्यान धरूं उनका।
मैं जब जब दूं आवाज़ प्रभु,
मेरी विनती तब तब सुन लेना।

 

रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज ( लखनऊ )

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