श्रृंगार | Shringaar

श्रृंगार

( Shringaar )

बड़े गर्व से शीश झुका कर कहता निश्चल निर्जल मन,

भारत मां को आज सजाए भाषाओं के आभूषण।

बाजूबंद उर्दू के बांधे , हाथों में गुजराती कंगन,

उड़िया के कुंडल कानों में , बलिया में  पायल की झनझन,

तमिल मुद्रिका, नथ पंजाबी, आसमी बड़ी सयानी है,

 पैरों में है कन्नड़ बिछुए, चुनार राजस्थानी है।

बालों पर एक चमक डोगरी, माथे पर हरियाणवी लाली है ।

कमर पर सजे तेलुगू , हार गले का बंगाली है।

 सभी भाषाएं सभी बोलियों भारत मां को भाती हैं,

बहुत मधुर है मणिपुरी भी, मीठी बहुत मराठी है ।

भाषाओं के आभूषण से यूं श्रृंगार तो पूरा है,

पर हिंदी की बिंदी के बिन भारत मां का श्रंगार अधूरा है ।

इसीलिए मैं कहता हूं

“भारत माता के ललाट पर, चमचम करती जो बिंदी है।

यही हमारे गौरव की संवाहक हिंदी है”

रतन सिंह सोढ़ी

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