Shyam kavita
Shyam kavita

श्याम

( Shayam )

 

रस लेकर रसखान सरीखे, काँन्हा तुम आ जाओ।
जग मे घटते प्रीत मोह रस, फिर से आ बरसाओ।

 

सूखी धरती उमड मेघ बन,जग की प्यास बुझाओ।
नटवर नागर कृष्ण कन्हैया,अब तो तुम आ जाओ।

 

कालीदास के मेघदूत बन, उमड घुमड कर आओ।
तृप्त करो मन की चंचलता,अब तो दरश दिखाओ।

 

राह देखते है नर नारी, मथुरा वृन्दावन गोकुल।
चंचल चितवन नही रहा यमुना जी भी है व्याकुल।

 

हे योगेश्वर ऋतु बसन्त भी तुम बिन है मुरझाया।
सावन भी है राह देखता, भादों मे मोहन आया।

 

ममता तुम बिन क्षीर्ण हो गयी, दूध उतर ना पाया।
देवकी यशोदा राह देखती, श्याम नही क्यो आया।

 

रसिक बिहारी ”शेर हुंकारी” दरश नही जब पाया।
नयन छलक गयी गागर बन जब,श्याम नजर ना आया।

 

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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