सिलसिला जब से मुहब्बत का हुआ | Romantic Poetry
सिलसिला जब से मुहब्बत का हुआ!
( Silsila jab se muhabbat ka hua )
सिलसिला जब से मुहब्बत का हुआ!
और भी रिश्ता उससे गहरा हुआ
आशना तो वो रहा बनकर मुझसे
वो नहीं दिल से मगर मेरा हुआ
देखता था जो कभी उल्फ़त नजर
आज मेरा दुश्मन वो चेहरा हुआ
गिर गयी दीवारें उल्फ़त की सभी
आज अपनों में ऐसा पंगा हुआ
भूल गये है दोस्ती रिश्ता अपनें
आज सब कुछ देखिए पैसा हुआ
नफ़रतों की बूंदे बरसी है यहां
प्यार का देखो चमन उजड़ा हुआ हो
देखता था प्यार से आज़म को ही
दूर आँखों से ही वो चेहरा हुआ