Soch Rahi Shakuntala
Soch Rahi Shakuntala

सोच रही शकुंतला

( Soch rahi shakuntala )

 

जल में रख कर पाव
सोच रही शकुंतला
ले गए ओढ़नी मेरी
दे गए गहरी पीर मोहे
कब आओगे प्रियवर
तकत राह ये नैन
हूं अधीर बेचैन
जल लेने को आई थी
जल नैनों से छलके रे
विरहन इस अगन को
जल से ही शीतल करे.

 

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

आतंक | Aatank

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here