Husn ka Gulab
Husn ka Gulab

हुस्न का गुलाब

( Husn ka gulab ) 

 

हुस्न का है गुलाब वो आज़म
शक्ल से लाज़वाब वो आज़म

फ़ूल लेता नहीं वहीं मेरा
दें निगाहों में आब वो आज़म

चाहता हूँ अपना बनाना वो
एक खिलता शबाब वो आज़म

दीद हो किस तरह भला उसका
ओढ़े है जो नक़ाब वो आज़म

शक्ल से वो हसीन चाहे हो
है सीरत से ख़राब वो आज़म

दोस्ती की कबूल उसने कब
दें रहा है ज़वाब वो आज़म

इक झलक वो यहाँ तरसता हूँ
फेरता मुंह ज़नाब वो आज़म

 

शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )

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