जगन्नाथ भगवान की कहानी
जगन्नाथ भगवान की कहानी
आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष द्वितीया शुभ दिन,
निकलती है जगन्नाथ भगवान के सवारी।
वर्ष भर में आता है एक बार ,
देखने को इसे भीड़ उमड़ती है भारी।
साथ रहते भाई बलभद्र चक्र सुदर्शन,
और है साथ लाडली बहना सुभद्रा प्यारी।
पांव नहीं है छोटे हाथ अधगढ़ी सी मूरत,
धन्य हुए भक्त देख तीनों की छवि न्यारी।
कई माह से बनाते हैं तीनों रथ,
रोक न सकी इस कार्य को कोई महामारी।
लाल ध्वजा दर्पदलन और नंदी घोष पर,
चल रहे हैं देखो मौसी के घर विश्व- विहार।
दिया युगों से पहले मौसी को आने का वचन,
नौ दिन रहते भक्तों के साथ जगत कल्याणकारी।
देश विदेश से उमड़ती है भक्तों की भीड़,
देखने को जगन्नाथ भगवान जी की लीला चमत्कारी।
ऊंच -नीच का भेद भूल कर खींचते,
रथ ना बदलना चाहे कोई अपनी पारी।
देख भक्तों का यह अपार प्रेम मुस्कुराते,
मंद मंद भगवान जगन्नाथ जगत के पालनहारी।
ढोल घंटों और मंत्रों से गूंजायमान है,
तीनों लोक यह ब्रह्मांड और दिशाएं सारी।
गोल गोल पृथ्वी सी आंखें इन नैनों से,
देख रहे हैं मंदिर में बैठे यह दुनिया सारी।
कान नहीं है प्रभु जी की मूरत में,
फिर भी सुन लेते हैं हर करुण पुकार हमारी।
कलकी रूप में विराजमान है बड़े मंदिर में,
आते बचाने जब पड़ती है भक्तों पर विपदा भारी।
कभी हाथी, कभी हिरण, कभी चैतन्य,
कभी भक्त सालवेग, अब है आई प्रभु हमारी बारी।
नौ दिनों के बाद जब जाओगे वापस प्रभु,
खत्म कर जाना यह भयंकर वैश्विक महामारी।
यही प्रार्थना कर रहे हैं दिन-रात भक्त सकल,
है जगन्नाथ प्रभु रक्षा करो सुनो करुण पुकार हमारी।
आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष द्वितीया शुभ दिन,
निकलती है जगन्नाथ भगवान की सवारी।
वर्ष भर में आता है एक बार,
देखने को इसे भीड़ उमड़ती है भारी।
जब निकलती है जगन्नाथ भगवान की सवारी।
लता सेन
इंदौर ( मध्य प्रदेश )