हे ! राम

( Hey Ram )

नज़्म

शिकायत किसी की न करते हैं राम,
एक प्लेटफार्म पे जीना सिखाते हैं राम।
आज्ञाकारी पुत्र तो वो बनकर दिखाए ही,
समाधान धैर्य से निकालते हैं राम।

राज -परिवार के वो बेटे तो थे ही,
जीवन की कला सिखाते हैं राम।
हार क्या होती है, जानते नहीं,
कभी नहीं आपा खोते हैं राम।

माता -पिता पे सवाल न उठाओ,
आज की पीढ़ी को सिखाते हैं राम।
झंझावातों से तुम कभी न घबराओ,
हमें दूरदर्शिता भी सिखाते हैं राम।

हर कोई हक़दार है समानता का देखो,
भेदभाव की दीवार न उठाते हैं राम।
सच्ची निष्ठा रखो अपने सरजमीं के प्रति,
सामरिक कदम भी उठाते हैं राम।

लगता है अच्छा जब भी राम -राम बोलो,
अदब से रहना सिखाते हैं राम।
वाल्मीकि,तुलसी लिखे बहुत कुछ उनके बारे में,
हमारे मन में इंक़लाब लाते हैं राम।

अंहकार की सीमा गर करोगे पार,
वक़्त का रावण उठा लेगा,कहते हैं राम।
जाति-पाँति के जाल से बाहर निकलो,
जूठा बेर शबरी का खाते हैं राम।

थरथराती है धरती कोई बम न बोओ,
बहाओ न उल्टी गंगा, कहते हैं राम।
चलाओ काफिला तो ईमानदारी का चलाओ,
हक़ न छीनों, कहते हैं राम।

छीनों न रोटी किसी बदनसीब की,
उसका भी उदर भरे कहते हैं राम।
करो न नादानी, वक़्त फिर न लौटेगा,
काँपे न मुफ़लिस, कहते हैं राम।

लालच का जेवर उतारकर फेंको,
मर्यादा का करो पालन कहते हैं राम।
हावी न होने पाए अधर्म कभी धर्म के ऊपर,
धर्म की रक्षा में उतरते हैं राम।

राहों में कोई फूल या बिछाए काँटा,
परिस्थिति में भी जीना सिखाते हैं राम।
लोग जगह-जगह बिकने को तैयार हैं बैठे,
दाग न लगाओ,बताते हैं राम।

रावण का वध करके लंका लिए भी नहीं,
त्याग का संस्कार बोते हैं राम।
ईंट-गारों में खोजो तो राम मिलेंगे भी नहीं,
बस सहज हृदय में समाते हैं राम।

हद में रहकर ही जीना सीखो,
करो न लक्ष्मण रेखा पार,कहते हैं राम।
बेटों को बनाओ लव-कुश के जैसा,
रहेगा वतन महफूज, बताते हैं राम।

कोई रावण कभी बढ़ाए जो कदम,
काट दो उस कदम को,कहते हैं राम।
दुनिया में इतना दम नहीं कोई तुम्हें हिला दे,
तूफानों में हो तुम पलते, कहते हैं राम।

 

लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )

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