आत्महत्या ईश्वर के प्रति अपराध
प्रेम में असफल होने पर, परीक्षा में फेल होने पर आज का युवा आत्महत्या करने पर उतारू हो जा रहा है। यह कुंठा और हताशा जीवन मूल्यों में आईं गिरावट और आस्था के संकट का परिणाम है।
ईश्वर की दी हुई काय को समाप्त करने का अधिकार भी उसे ही है। ऐसे में आत्महत्या मानवता और ईश्वर के प्रति अपराध है। सहनशक्ति बड़ा मूल्य है। जो सहना जानता है वह जीना भी जानता है।
अगर जीवन में सब कुछ हमारी मर्जी से होने लगे तो क्या जीवन जीने का वास्तविक आनंद मिल पाएगा। क्या अनिश्चितता में सौंदर्य नहीं होता? मूल्यों के संक्रमण के दौर में पारिवारिक विघटन बढ़ा है और इसी के चलते पारिवारिक कलह जन्म ले रहा है।
जब हम स्वयं इस कदर स्वार्थी हो गए हैं कि अपने अलावा और किसी के बारे में सोच ही नहीं सकते तो फिर जब हम मुसीबत में हैं कोई हमारे बारे में क्यों सोचेगा ? समाज में असहिष्णुता को दूर किया जाना बहुत जरूरी है ।
पत्नी के प्रेम में बावले तुलसीदास और वेश्या के प्रेम में असफल घनानंद अगर ईश्वर के सबसे बड़े भक्त हो सकते हैं और कालिदास जैसा वज्र मूर्ख साहित्य का भूतों ना भविष्यति लेखक बन सकता है तो फिर हमें डरने की क्या जरूरत है ? जीवन में स्नेह की सरिता बहाने से उसका उत्तम परिणाम भी मिलता है । असफलता तो सफलता का पूर्व चरण मात्र है।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )