सुंदर सोचें, सुंदर बने | Prernadayak kavita
सुंदर सोचें, सुंदर बने
( Sundar sochen, sundar bane )
सुंदर सोचें सुंदर बने, आओ करें विचार।
दो दिन का है पाहुना, नश्वर यह संसार ।।
देवालय सा तन है तेरा, सुंदर मूरत आत्मा ।
शुभ भावों को मन में भरले, सहज मिले परमात्मा ।
दुष्टों का कर खात्मा, उतरे सिर से भार।
दो दिन का है पाहुना, नश्वर यह संसार।।
काम क्रोध मद लोभ तो, है विषियन की खान।
शील संतोष सत्य धर्म, से होती पहचान।
मान चाहे ना मान, सद्कर्मों को सिर धार।।
दो दिन का है पाहुना, नश्वर यह संसार ।।
भावों का है खेल जगत में, वैसा ही बन जाता।
कोई संत सुजान बने, कोई दानव कर्म निभाता ।
क्या खोता क्या पाता, लेखा लेता है करतार ।।
दो दिन का है पाहुना ,नश्वर यह संसार ।।
प्रेम भरा हो घट के भीतर ,पर सेवा अपनाना ।
दीन दुखी को गले लगाकर,जीवन सफल बनाना।।
सुंदर साज सजाना “जांगिड़”, रहना है दिन चार।
दो दिन का है पाहुना, नश्वर यह संसार ।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )