स्वाभाविक | Swabhavik
स्वाभाविक
( Swabhavik )
हर रात अंधेरे का ही प्रतीक नही होती
तीस रातों मे एक रात होना स्वाभाविक है
उजाले के दिनकर को भी होता है ग्रहण
हर किसी मे कुछ कमी होना स्वाभाविक है
कभी टटोलकर देखिए खुद के भीतर भी
आपमे भी कमी का होना स्वाभाविक है
पूर्णता की तलाश मे ,उम्र छोटी पड़ जायेगी
कुछ समझौतों का भी होना स्वाभाविक है
संभव नहीं ,अपनी ही दाल गले हरदम
कभी औरों की भी गल जाना स्वाभाविक है
दिन रात के बीच , शामो सहर भी हैं आते
कभी किसी मोड़ पर,ठहरना भी स्वाभाविक है
( मुंबई )