Holi Aayi Khushiyan Layi
Holi Aayi Khushiyan Layi

होली आई खुशियां लाई

( Holi Aayi Khushiyan Layi )

 

खुशियों की सौगातें लाया फिर होली-त्योंहार,
रंग लगाओ प्रेम-प्यार से करों गुलाल बौछार।
करों गुलाल बौछार जिसका था हमें इन्तज़ार,
दूर करों गिले शिकवे एवं दिलों की तकरार।।

खो ना देना संबंधों को तुम बनकर अमलदार,
लाज, शर्म रखना मेरे भाई उत्तम ये व्यवहार।
है यह ऐसा त्योंहार जिसे मनाता सारा संसार,
रंग की भरी पिचकारी चलती यह द्वार-द्वार।।

गांव-शहर की ये गलियां हो जाती है गुलज़ार,
जात-पांत बैर-भाव भूलकर करते सब प्यार।
सतरंगी गगन हो जाता किया जैसे यह श्रृंगार,
घरों-घरों में पकवान बनाती घरों की ये नार।।

लगता है इसदिन सभी का चेहरा बंदरों जैसा,
बीत गई कई सदियां होली खेले कैसा-कैसा।
ढोल-नगाड़े व चंग पर थाप पड़ता ऐसा-वैसा,
रंग खेलकर ख़ुशी मनातें उड़ाते रुपये-पैसा।।

सच में होली खेलने का उसी को है अधिकार,
बच्चा हो या कोई बच्ची मनमानी न करें यार।
बतानी है ये बात सभी को करता उदय गुहार,
झूमें-नाचें गाएं-बजाएं पर मत करना प्रहार।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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