तमाम बस्ती जला रहा  है

तमाम बस्ती जला रहा है

तमाम बस्ती जला रहा  है

 

 

तमाम    बस्ती  जला   रहा  है।

मकान   अपना   बचा  रहा है।।

 

नहीं  किसी  की  बचेगी हस्ती ।

बिसात  ऐसी   बिछा  रहा है  ।।

 

वो घोल करके दिलों में नफ़रत।

जहां से  उल्फ़त  मिटा रहा है।।

 

वो दोष औरों के सर पे मढ़कर।

बेदाग़  ख़ुद को  दिखा  रहा है।।

 

ये किसको है रोशनी से नफ़रत।

ये   कौन    दीये   बुझा  रहा है।।

 

‘कुमार’  कैसे  बचेगी उल्फ़त?

मुझे    यही  ग़म  सता  रहा है !।

 

?

लेखक: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

यह भी पढ़ें : 

खो गया दिल कहीं आपको देखकर

 

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *