
तेरी ये तो लफ़्ज़ों की जादूगरी है
( Teri Ye To Lafzon Ki Jadugari Hai )
तेरी ये तो लफ़्ज़ों की जादूगरी है
हो गयी तुझसे सनम ये आशिक़ी है
दूर जब से तू गयी है जानम मुझसे
तेरी यादों में दिन रातें कट रही है
राह में ही इक हंसी चेहरा मिला था
रोज़ पाने को उसकी अब बेकली है
है लगे उसको मसलने को ही भंवरे
इक खिली जो गुलिस्तां में कली है
छोड़ दें मुझको नज़ाकत ये दिखानी
देख कर लें ए सनम तू दोस्ती है
और क्या मैं अब लिखूं गुल चाँद तुझको
बन गयी तू “आज़म” की ही शाइरी है
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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