Romantic Ghazal -तुझसे जब तलक़ मुहब्बत करते रहे हम
तुझसे जब तलक़ मुहब्बत करते रहे हम
( Tujhse Jab Talaq Muhabbat Karte Rahe Ham )
तुझसे जब तलक़ मुहब्बत करते रहे हम
बड़े सलीके से इबादत करते रहे हम
मंजूर-ए-खुदा है इश्क़, किया जाए
इस बात पर सदा बगावत करते रहे हम
उसको रास्तों पर जब जब भी देखा हमने
बदनाम अपने ही शफ़ाक़त करते रहे हम
कुछ सजा की तरह नादाँ-ए-दिल लगता रहा
और उसे भुलाने की आदत करते रहे हम
जब होकर उसके भी उसका नहीं लगा तो
अजनबियों के तरह मुलाक़ात करते रहे हम
जब जब भी ‘अनंत’ दीदार हुए है खुदको
बे-शबब फिर क्यों रियाज़त करते रहे हम
Manjoor-e-khuda: Permitted by God,
Shafaqat: Culture,
Be-shabab: For no reason,
Riyazat: Devotedness
लेखक : स्वामी ध्यान अनंता
( चितवन, नेपाल )