
तुम एक नज़्म ही सही
( Tum ek nazm hi sahi )
तुम एक नज़्म ही सही मेरी
किताब में तो सजी हो मेरी
लबों पर लरज़ती कभी
आंखों से गुजरती तो हो मेरी
दिल ही में गुनगुनाता हूं
उंगलियां सहलाती तो है मेरी
रू ब रू न सही
रूह में नजर आती तो हो मेरी
गोशा-ए-‘उज़्लत और मैं
तन्हा सी होती तुम तन्हाई हो मेरी
तुम एक नज़्म ही सही
किताब में तो सजी हो मेरी..
लेखिका :- Suneet Sood Grover
अमृतसर ( पंजाब )