तुम जरा ठहरो | Tum zara thehro
तुम जरा ठहरो
( Tum zara thehro )
तुम जरा ठहरो मुझे कुछ, और बाते करनी है।
दरमियान जो फासलें है, उसको मुझको भरनी है।
एक बार बस सुन तो लो तुम,मुझको जो कहना है वो,
खत्म होती सी कहानी, मुझको फिर से लिखनी है।
किसकी गलती थी यहाँ और,किसकी रस्म अदायी थी।
किसने दिल को तोड़ था और, किसकी बेहयाई थी।
इन पुरानी बातों पर अब, चर्चा ना होगा कभी।
जिन्दगी तेरे ही संग मुझे,फिर शुरू करनी अभी।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )