तुमसा बेवफा जमाने में नहीं

तुमसा बेवफा जमाने में नहीं

तुमसा बेवफा जमाने में नहीं

 

?

जब भी छेडा किस्सा वो पुराना, प्रेम से

मैं महीनों सो ना न पाई चैन से

मेरा दिल बेचैन था उस अनजानी सी टीस से

 मैं महीनों सो ना पाई चैन से

?

तुमतो मुडकर खो गए अपनी दुनियाँ में कहीं

तेरी आहट से धड़कता दिल रहा

मैं वहीं से टूट कर रुसवा हुई

मैं महीनों चैन से सो ना सकी

?

तेरे हाथों में मेरी रेखा नहीं

मैं तेरी चाहत का दम भरती रही

तुझको मेरा होश पलभर नही

मैं महीनो चैन से सो ना सकी

?

एक जरा सी बात पर होकर ख़फा

तू मुझे मझधार ही धोखा दिया

तेरी राहो में मैं यूँ निसार हुई

मैं महीनों चैन से सो ना सकी

?

एक बार कभी आना मेरी दुनियाँ में

मैं वहीं बुत बन कर खडी

मेरी पलकों से चुराई नींदे सभी

मैं महीनो चैन से सो ना सकी

?

बात वफा की चल गई गर कही

तेरा हर्फे नाम ना होगा कहीं

 बेवफा तुझ सी कभी हो ना सकी

मैं महीनों चैन से सो ना सकी

 

?

लेखिका : डॉ अलका अरोडा

प्रोफेसर – देहरादून

यह भी पढ़ें :

आ जा कि दिल उदास है | Udas poetry

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *