बंजारा की दो नयी कविताएँ
बंजारा की दो नयी कविताएँ
( 1 )
देवता कभी
पत्थरों में खोजे गये और तराशे गयें
देवता कभी
मिट्टी में सोचे गये और ढ़ाले गयें
देवता कभी
प्लास्टिक में देखे गये और सांचे गयें.
देवता लगातार
सूखे पत्तों और कोरे कागजों पर चित्रित किये जाते रहें.
मगर…अफ़सोस !
देवताओं को कभी हमने दिल में उतारा ही नहीं.
देवता यदि दिल में उतार लिये जाते
सभी को अपने अंदर प्रतिबिंबित होते
तब
आज हम क्योंकर इतने असंतुष्ट और दिग्भ्रमित होते ?
( 2 )
मिट्टी को भरोसा है कि
बीज उसमें मिलकर अंकुरित हो जायेगा
पानी को यक़ीन है कि
रंग उसमें घुलकर अपनी-सी पहचान बनायेगा
हवा को विश्वास है कि
तिनका उसमें झूलकर डाली -डाली गुनगुनायेगा .
और
आकाश को भी इतमिनान है कि
धुआं उसमें फैलकर अनंत की ऊंचाइयां पायेगा .
बस…
एक मेरे दिल को ही शक है —
कि तुम उसमें समाओगी
पर , क्या जीवन -भर प्यार निभाओगी.
ये कैसा दिल है
और दिल का रिश्ता है
जो मिट्टी पानी हवा आकाश की तरह
कभी आश्वस्त नहीं करता !
सुरेश बंजारा
(कवि व्यंग्य गज़लकार)
गोंदिया. महाराष्ट्र
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