रह गए काम अधूरे
( Rah Gaye Kaam Adhure )
जाने किस मुश्किल में खोए, सपने हुए ना पूरे।
बीत गई उमरिया पल पल, रह गए काम अधूरे।
रह गए काम अधूरे
कालचक्र के दांव द्वंद, कभी चले कभी ठहरे।
कभी टूटे किस्मत के ताले, लबों पर लगे पहरे।
अपने रूठे राह चल दिए, कर अपने मतलब पूरे।
औरों को खुश कर ना पाए, वो तिरछे नैनों से घूरे।
रह गए काम अधूरे
बचपन बीता आई जवानी, गोरख धंधा हाथ लगा।
पिसता रहा बैल कोल्हू, भाग्य सितारा नहीं जगा।
दिन-रात दौड़ा भागा, खड़े कर ना पाया वो कंगूरे।
घर आंगन दीवारों को थामे, सांसों के हो गए चूरे।
रह गए काम अधूरे
हंस हंसकर मोती बांटे, काम औरों के हम आए।
हर मुश्किल तूफानों में भी, हम पर्वतों से टकराए।
सच्चाई की राह पे, सबके, मंसूबे कर ना सके पूरे।
मीठे बोल मधुर वाणी, बोलो शब्द कैसे हुए धतूरे।
रह गए काम अधूरे
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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