उनकी तस्वीर को हमें गले से लगाना था
उनकी तस्वीर को हमें गले से लगाना था
उनकी तस्वीर को हमें गले से लगाना था
बाकी सब तो फ़क़त इसीका बहाना था
मुहब्बत यूँ भी तो बड़ा अजब है यारा
के खुद से रूठकर दुसरो को मनाना था
हम पर फ़ज़ा-ए-उल्फत की नज़र ऐसी है
जान के लिए बाज़ी जान का लगाना था
ऐन वक़्त पर हम पलट कर तो आये थे
वर्ना कहाँ हमें अपने इख्तियार में होना था
क्यों करें मुखालफत हम किसी और का
जब की दिल तो हमें खुद से लगाना था
आबरू-ए-तखल्लुस, क्या खूब है ‘अनंत’
कोई भूल ना पायेगा के एक दीवाना था
शायर: स्वामी ध्यान अनंता