
उसके ख़त का जवाब देना है
उसके ख़त का जवाब देना है
अब उसे एक गुलाब देना है
जान तो नाम कर चुके तेरे
और क्या अब जनाब देना है ?
इस जहां में तुझे ही बस हमको
बावफ़ा का ख़िताब देना है
और कुछ आरज़ू नहीं मेरी
बस तुझे इक गुलाब देना है
मयकदे जैसी तेरी आँखें का
काम सबको शराब देना है
चूमकर तेरे गोरे गालों को
और थोड़ा शबाब देना है
अपने दुश्मन को ही मुझे अब तो
वक़्त अपना ख़राब देना है
मुब्तिला तेरे इश्क़ में होकर
धड़कनों को रबाब देना है
उम्रभर के गुनाहों का सबको
एक दिन तो हिसाब देना है
एक पल का भी फासला तुझसे
ख़ुद को जैसे अज़ाब देना है
प्यार देना है काम अपना तो
और उनका इताब देना है
शायरी के लिये ‘अहद’ अब तो
सोच को इज्तिराब देना है !
?
शायर:– अमित ‘अहद’
गाँव+पोस्ट-मुजफ़्फ़राबाद
जिला-सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश )
पिन कोड़-247129
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