वर्षा भैया भारी | Varsha bhaiya bhari
वर्षा भैया भारी
( Varsha bhaiya bhari )
शाम शाम के होन लगी है वर्षा भैया भारी,
जगह जगह पे छिपन लगे है सबरे नर और नारी।
कहीं हवाये, कहीं है बिजली, कहूँ बरसो है भारी,
एसो मौसम देख देख के हमरो दिल है भारी।
हो रहो हैरान किसान हमारो आंतक मच गयो भारी,
कहीं बोनी कहीं बतर नई पड़ी,किसान रो रहो भारी।
हर्रई नगरिया बीच बजरिया भीड़ लगी है भारी,
फिर से मौसम बनन लगो है, लगत वर्षा होहे भारी।
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कवि : योगेश नेमा
हर्रई ( छिंदवाड़ा )
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